
प्रदीप शर्मा संपादक
विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद नए नेता को मुख्यमंत्री बनाने के बाद फटाफट मंत्रीमंडल बनाने के कयास लगाए जा रहे थे। मगर कुछ माह बाद लोकसभा चुनाव देखते हुए पार्टी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। यही कारण है कि मंत्रीमंडल बनाने के लिए बैठकों के दौर आयोजित कर रणनीति बनाई जा रही है। पार्टी आलाकमान इस बार नई टीम तो बनाना चाहता है मगर कहीं कोई असंतोष की गुंजाइश न रहे इसके प्रति भी चौकस है।

शुरुआत में आलाकमान को इस बात के संकेत मिले थे कि मुख्यमंत्री चयन को लेकर वरिष्ठ नेता शिवराजसिंह चौहान के मन में कसक बाकी है। वहीं नए मंत्रीमंडल निर्माण की बैठक में न आने या न बुलाने से कोई गलत संदेश तो नहीं जा रहा है। ऐसी अनेक बातों को ध्यान में रखकर विगत दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा शिवराज को दिल्ली बुलाकर उनसे चर्चा की। इसके बाद श्री चौहान ने भी मीडिया को साफ कर दिया कि वे अब दल में नई भूमिका निभाने को तैयार हैं।
नई गाईडलाईन बनाई –

उच्च राजनीतिक सूत्रों से जो जानकारी छनकर सामने आ रही है उससे पता चलता है कि इस बार के मंत्रीमंडल में नए चेहरों को स्थान दिया जाएगा। इसका एक खास कारण यह भी हो सकता है कि दिग्गज और कद्दावर नेताओं को स्थान मिलने से मुख्यमंत्री को काम करने में कोई परेशानी न हो। इसके अलावा वरिष्ठ नेता भी इस टीम में संभवतः स्वयं को असहज मेहसूस नहीं करते। हां इस बात का अवश्य ख्याल रखा जाएगा कि उन्हें पूरा मंडल अपना सा लगे।
लोकसभा सीटों पर ध्यान –
चूंकि नए मंत्रीमंडल का गठन आने वाले लोकसभा चुनाव की छाया में हो रहा है। इसलिए सभी संसदीय क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देने के साथ उन पूर्व सांसदों की पसंद पर ध्यान दिया जाएगा जिन्हें हाल ही में सांसदी से त्यागपत्र दिलाकर विधानसभा चुनाव लड़ाया है। पार्टी नहीं चाहेगी कि 29 में से 29 सीटों पर कहीं कोई नाराजी और विवाद रहे।
नहीं चलेगा पट्ठावाद –
इन सबके बावजूद इसका भी खास ध्यान दिया जाएगा कि कोई किसी गुट का न तो पट्ठा हो और न ही उसके नाम पर कोई विवाद। सबसे खास यह भी कि जिन्हें तीन-चार बार प्रदेश के मंत्रीमंडल में मंत्री बनाया जा चुका है, उन्हें इस बार मौका न दिया जाए। इस तरह अनेक नेताओं के नाम सूची से बाहर हो जाएंगे और प्रदेश को एक ऐसा मंत्रीमंडल मिलेगा, जो अपने मुख्यमंत्री डाॅ.मोहन यादव की तरह नया नवेला तो होगा। साथ में कुछ नया करने को उत्साही भी।
