क्या हैं एकांत ध्यानयोग मौन साधना के निहितार्थ
मोदी की विवेकानंद राॅक पर मौन साधना के क्या हैं मायने
प्रदीप शर्मा संपादक
लोकसभा चुनाव 2024 में अंतिम दौर का प्रचार समाप्त होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तरकश से निकले तीर ने देश के राजनीतिक जगत में खलबली मचा दी है। वे 48 घंटे एकांत ध्यानयोग मौन साधना करने कन्याकुमारी में विवेकानंद राॅक पहुंचे हैं। उनके इस कदम से पता चलता है कि जितनी प्रभावी उनकी वाणी है उससे अधिक उनका मौन ध्यानयोग भी हो सकता है। इस साधना के क्या मायने हो सकते हैं, देश-दुनिया के राजनीतिक प्रेक्षकों में इसे जानने की बड़ी जिज्ञासा है।
-जीनियस मोदी और बौना विपक्ष-
प्रधानमंत्री के इस तीर को यदि कोई उनका राजनीतिक दाव मान रहा है तो ऐसी धारणा निर्मूल है, क्योंकि 2019 के चुनाव में भी वे ध्यानयोग साधना करने कैदारनाथ की गुफा जा चुके हैं। हां इतना अवश्य कहा जा सकता है कि राजनीति के जीनियस खिलाड़ी मोदी के सामने विपक्ष काफी बौना है।
-मौन की ताकत असीम-
मौन में कितनी ताकत है, इसकी व्याख्या हमारेे हमारे ऋषि-मुनियोंं मुनियों और संतों ने समय-समय पर अपने प्रवचनोंं में अनेक बार की है। यह मुनि शब्द भी उसी मौन सेे से उत्पन्न हुआ है। चुनाव मेंं इस मौन की ताकत भी अंतिम चरण के मतदान पश्चात तब देखने को मिलेगी को जब नतीजेे सामने आएंगेे। बहरहाल इतना अवश्य कहा जा सकता है कि पूरे चुनाव मिशन दौरान बहुसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण करने में विपक्ष की कारस्तानियों ने बड़ी अहम भूमिका निभाई है।
-एकांत साधना के मायने-
कन्याकुमारी में विवेकानंद मेमोरियल राॅक पर मोदी की मौन साधना के गूढ़ निहितार्थ हैं। प्रधानमंत्री जानते हैं कि तीसरी पारी के दौरान उनके समक्ष देश के आंतरिक और वैश्विक परिवेश में अनेक चुनौतियां सामने खड़ीं हैं। उन्हें दो दशक के बाद 2047 के भारत की नींव रखना है, जिसका सपना उन्होंने देशवासियों को दिखाया है/ वहीं विश्व में बह रही अशांति की बयार को थामने में भारतवर्ष को महती भूमिका निभानी है। इसलिए उन्होंने अन्य नेताओं की तरह टूरिंग ब्रेक न लेकर इस घड़ी को आत्मसाधना के लिए चुना। इसलिए मोदी की इस एकांत साधना की आलोचना करने के स्थान पर इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
बस निहित स्वार्थों के चलते सनातन धर्म का विरोध करने वाले दलों और नेताओं को यह जान लेना चाहिए कि ऐसे ध्यानयोग और एकांत साधना का ध्येय सदैव कल्याणकारी रहता आया है –
“सर्वे भवन्तु सुखिन, सर्वे निरामया”