प्रदीप शर्मा संपादक
बीते लोकसभा चुनावों के दौरान किसी नेता की ऐसी घनघोर लोकप्रियता शायद देखने को नहीं मिली जो 2024 के चुनाव में साफ नजर आ रही है। कई दशकों के बाद लोकसभा का यह पहला आमचुनाव है, जब विपक्ष के नेता वोटिंग से पहले ही अपनी हार मान चुके हैं। इन नेताओं की “बाॅडी लैंग्वेज” और बयानों के सुर साफ नजर आते हैं कि 2024 में आएगा तो सिर्फ मोदी।
इनके बयानों से लगता है कि वे अब अपना-अपना किला बचाने पर ही ध्यान दे रहे हैं। कुछ दिन पहले राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने एक बयान में अपनी खीज निकालते हुए कहा कि – “ये 400 पार का मतलब क्या है। यदि ऐसा कुछ हो गया तो भाजपा संविधान में बदलाव कर देगी।” इनके बयान का मतलब साफ है कि नैशनल एसेंबली के इलेक्शन में इन्होंने अपनी हार मान ली है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने की कवायद कर रहे हैं। वहीं उनकी पार्टी के रिमोट कंट्रोल्ड अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह को जातिवादी रंग देने के मिथ्या आरोप लगा रहे हैं। जबकि इन्हें इस कार्यक्रम में आने का न्यौता राम मंदिर ट्रस्ट ने दिया था।
दक्षिण भारत के एक नेता ने मोदी की लहर देखकर कह दिया कि सनातन धर्म को ही डेंगू मलेरिया की तरह खत्म कर दिया जाए। नेताओं की ऐसी खीज से पता चल रहा है कि वे वोटिंग से पहले ही इस मोदी लहर में अपनी हार मान चुके हैं।
इधर जो तमाम संस्थानों ने अपना जो कथित चुनाव सर्वे कर बताया है उसमें वे भी भाजपा+एनडीए को 370 का आंकड़ा देते नजर आ रहे हैं। यानी लंबे समय बाद संभवतः लोकसभा का यह पहला आमचुनाव है जिसमें विपक्ष पहले ही अपनी हार मान बैठा है।
खास बात यह बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाएं और रैली प. बंगाल और दक्षिण भारत में की जा रही हैं, ताकि उनकी लोकप्रियता से इन राज्यों में भी भाजपा अपना स्थान बना सके।