प्रदीप शर्मा संपादक हृदयभूमि
बीते हजारों साल में वैदिक सभ्यता और प्राचीन भाषा संस्कृत में रचित ग्रंथ आज भी विद्यमान हैं जबकि सारा लेखन वाचिक परंपरा से हुआ। उस जमाने की कई भाषाएं भी लुप्त हो गईं, जब संस्कृत में बड़े धर्मग्रंथों के साथ अनेक शोध लिखे गए।
मगर कुछ नेताओं की हसरत है कि सनातन धर्म को डेंगू-मलेरिया की तरह मिटा डालेंगे। फिर सवाल तो होगा कि यूनानो, रोमां और मिस्रां मिट गए इस जहां से/ मगर फिर भी बाकी है नामोनिशां हमारा!
– मगर अभी लोकसभा चुनाव 2024 के पूर्व सनातन धर्म के विरुद्ध वोटों की खातिर कुछ नेताओं के ऐसे बयान जारी हुए कि वे चंद वोटों की खातिर इसकी अस्मिता को खत्म कर डालेंगे। शायद इन्होंने वैदिक संस्कृति और सभ्यता का इतिहास नहीं पढ़ा/
या उसे कहीं जरा भी जाना नहीं, जबकि उनके राज्यों में ही खड़े विशालकाय मंदिर अपने अक्षुण्ण होने की गवाही हजारों साल से दे रहे हैं।
– यह उनकी अपनी राजनीतिक समस्या हो सकती है या उनके ज्ञान की बहुलता/ मगर मंशा पर सवाल उठता है कि उन राज्यों में बने बड़े विशाल मंदिरों और कन्याकुमारी के रामसेतु पथ, जिनसे उनका पर्यटन उद्योग और अर्थव्यवस्था चलती हो। तब उसका क्या होगा।
-हैरानी इस बात की भी एक राज्य या देश में अल्पमतीय सरकार बनने के बाद ये मठाधीश नेता कैसे दुनिया के उन अनेक देशों में बने मंदिरों के साथ, वहां की बड़ी आस्थावान आबादी को किस तरह मिटा पाएंगे।
-सो चुनाव में नेताओं की ऐसी मतलबपरस्ती पर अनेक सवाल खड़े हो रहे हैं, जिनका जवाब आवाम ही देगा।
-मगर क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की खातिर वे स्वयं के अस्तित्व की मौलिकता पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। इसकी खोज भी होगी और इतिहास भी इन्हें खूब जानेगा।