November 9, 2024 |
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अब निर्णायक मोड़ पर भारतीय अर्थव्यवस्था

5 ट्रिलियन इकोनॉमी का लक्ष्य पाना मुमकिन

Hriday Bhoomi 24

प्रदीप शर्मा संपादक

केद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद देश में सरकार के खिलाफ ऐसे अनेक स्वयंभू अर्थशास्त्रियों की जमात सक्रिय हो गई है, जिन्हें अर्थशास्त्र का अर्थ भी नहीं पता।

चौक-चौराहों पर चाय-पान की गुमटियां इनके मुख्य ठिकाने हैं। ये जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय वित्त मंत्री सीतारमन को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ते। मगर ये लोग भूल जाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में बीते वर्षों के दौरान अचानक जो बूम आया है वह इसी एकीकृत कर प्रणाली की बदौलत हुआ। अन्यथा सुस्त गति से चल रही अर्थगति की चाल से यह लक्ष्य पाना मुमकिन नहीं था।

क्षेत्रीय विकास के मामले में इन सभी स्वयंभू अर्थशास्त्रियों का दोहरा मापदंड यह रहता है कि हमारे क्षेत्र में बेरोजगारी बहुत है और यहां इंडस्ट्रीज नहीं खुली। मगर जब सरकार बड़े उद्योगपतियों को न्यौता देकर उन्हें उद्योग लगाने हेतु सुविधाओं का ऐलान करती हैं तो इनका सबसे पहला आरोप यही रहता है कि सरकार उद्योगपतियों को कौड़ी के दाम में जमीन ऐलाट कर उन्हें सस्ती बिजली दे रही है। और यह भी कि यह सरकार पूंजीपतियों की गोद में बैठकर गरीबों का हक मार रही है।

यहां वे भूल जाते हैं कि इनकी इकाईयों के लगने से हजारों मजदूरों को रोजगार मिलेगा। इनका उत्पाद बिकने से शासन के खजाने में करोड़ों का राजस्व जमा होगाजमा होगा। इससे ट्रांसपोर्ट उद्योग की गति मिलेगी। नए निर्माण होने से सीमेंट और लोहे के कारोबार में तेजी आएगी। रेजे, कारीगर और श्रमिकों को काम मिलेगा।

याद करें पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में छोटी कार बनाने की योजना का विरोध होने पर गुजरात सरकार ने उद्योगपति नवरतन टाटा को बुलाकर राज्य की अर्थव्यवस्था को तेज कर दिया था। इससे युवाओं को रोजगार मिले और अन्य कारोबारी जगत में उछाल आया था। 

अक्सर हमने देखा है कि विदेशी राष्ट्राध्यक्ष जब भी भारत आते हैं तो वे व्यावसायिक संधि पर पहले हस्ताक्षर करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आकर उनके यहां के एफ-16 विमान को खरीदने की सिफारिश भारत सरकार से करते हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति भी जिस विमान की हिमायत भारत सरकार से करते हैं वे कंपनियां वहां की सरकारी कंपनी नहीं है। बल्कि प्रायवेट उद्योगपतियों के कारखाने हैं जिनके चलने से वहां की अर्थव्यवस्था बढ़ती है। उनका उत्पादन विदेश जाने पर उनके देश के खजाने में विदेशी मुद्रा का भंडार बढ़ता है।

मगर हमारे देश का प्रधानमंत्री यदि विदेश जाकर किसी भारतीय कंपनी की पैरवी कर दे तो अपने मुल्क में बड़ा बवाल मच जाए। पीएम पर किसी उद्योगपति की दलाली करने जैसे आरोप लगने लगें।

आज हमें देश और दुनिया की तरक्की देखते हुए वहां की तकनीकी और नीतियों से काफी कुछ सीखने की आवश्यकता है। हमारी परंपरागत सोच में जब तक बदलाव नहीं आएगा हम बड़े लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाएंगे।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतवर्ष को 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने का जो संकल्प लिया है। इसे पाने के लिए हमें बड़े परिश्रम की आवश्यकता है। ये सब बड़ी उद्योग इकाईयों के आने और छोटे-छोटे स्टार्ट-अप्स लगाने की ओर ध्यान देना होगा। यह गाल बजाने से नहीं मेहनत करने से होगा।


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