January 22, 2025 |
Search
Close this search box.

नाथ की पटकथा पूरी तरह तैयार थी, मगर टल गई कहानी

ऐन मौके पर आए पैंच से नहीं बनी बात

Hriday Bhoomi 24

प्रदीप शर्मा संपादक

भाजपा में तकनीकी पेंच और कांग्रेस की सतर्कता से पार्टी के बड़े नेता कमलनाथ और उनके पुत्र का भाजपा में जाना टल गया है। कमलनाथ की विदाई रोकने में पीसीसी अध्यक्ष जीतू पटवारी की इमोशनल अपील की भी बड़ी भूमिका रही।

पिछले एक पखवाड़े से प्रदेश कांग्रेस के एक बड़े नेता कमलनाथ का अपने समर्थकों के साथ भाजपा में जाने की कहानी राजनीतिक घटनाक्रम में कहीं दफन हो गई है। अब इसे सोशल संपर्क बताकर खारिज किया जा सकता है। मगर नाथ के भाजपा में जाने और न जाने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल जिस नेता ने टूटती बिखरती पार्टी को बचाने में अपनी छवि दाव पर लगाकर काम किया और उनकी अवहेलना हो तो समर्थक भी नहीं पचा सकते। सो हालिया चुनाव में हार का ठीकरा उनके माथे फोड़कर नैपथ्य में किया जाना भला समर्थकों को कैसे बर्दाश्त होता।  

क्या थे फैक्टर –

दरअसल आगामी लोकसभा चुनाव के पूर्व मध्यप्रदेश के बड़े कांग्रेस नेता कमलनाथ के भाजपा में जाने की कहानी बहुत चर्चा में रही। मगर कुशल राजनेता कमलनाथ के मुंह से कभी ऐसा शब्द या बयान नहीं हुआ जिससे इसकी पुष्टि हो सके। अलबत्ता संचार माध्यम में उनके समर्थकों की डीपी में बदलाव होना बड़े राजनीतिक संकेत थे। साथी नेताओं के बयान भी ऐसे थे कि वे नाथ के साथ कहीं भी चले जाएंगे।

बताते हैं कि इस दौरान विधायकों, नगर निगम व निकाय अध्यक्षों सहित पार्टी जिला अध्यक्षों की सूची भी बन रही थी। पूरी पटकथा भी तैयार थी कि और दिल्ली में अमित शाह की हरी झंडी पश्चात नाथ मध्यप्रदेश में अपने  समर्थकों के साथ भाजपा में कभी भी प्रवेश कर लेंगे।

मगर बात नहीं बनी 

नाथ के भाजपा में प्रवेश से केसरिया दल को आमचुनाव में काफी लाभ भी मिलता। सो सबकुछ लगभग तय था। मगर कैलाश विजयवर्गीय के विरोध और सिंधिया की आपत्ति इसमें बाधा बन गई। खास यह कि दिल्ली दंगे में सिक्खों की नाराजी भावना देखकर सज्जन सिंह वर्मा सहित नाथ की एंट्री पर भी सवाल थे। नाथ चाहते थे कि वे न सही मगर उनके पुत्र नकुल नाथ को ही प्रवेश मिल जाए किंतु कांग्रेस की ओर से यह आपत्ति जताने पर कि पिता कांग्रेस में और पुत्र भाजपा में वाली नीति नहीं चलेगी। सो ऐन मौके पर सजग पीसीसी चीफ जीतू पटवारी की भावुक अपील बाद कमलनाथ का केसरिया दल में जाना टल गया।

कमलनाथ की राजनीतिक हैसियत 

देश में आई मोदी लहर के बाद बीते सालों में मध्यप्रदेश की टूटती बिखरती कांग्रेस को बचाकर मुख्य धारा में बनाए रखने का काम एकमात्र जिस नेता के खाते में है, तो वह दिग्गज नेता कमलनाथ हो सकते हैं। प्रदेश में जब शिवराजसिंह के नेतृत्व में चौथी पारी हेतु भाजपा की पूरी तैयारी थी, तब बिखरती कांग्रेस का नेतृत्व संभालकर तत्कालीन पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ ने केसरिया सपनों पर विराम लगा दिया था।

डेढ़ दशक बाद उनके नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी और पार्टी को जीवनदान मिला। मगर बाद में दल के भीतर विद्रोह के चलते उनकी सरकार बनी और पार्टी को जीवनदान मिला। मगर बाद में दल के भीतर विद्रोह के चलते उनकी सरकार असमय गिर गई और भाजपा की मिली-जुली सरकार आ गई। इसमें सबसे खास बात यह थी कि पार्टी में इस बगावत दोष उनके माथे नहीं लगा।

फिर उम्मीद तो यह थी कि नाथ की सरकार गिराने का दोष देकर कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में एक बार फिर वापसी कर लेगी। मगर टिकट वितरण से लेकर प्रचार मुहिम में कमी के चलते यह दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले दल के मुकाबले कामयाब नहीं हो सका। अलबत्ता इस हार का दोष नाथ के माथे नहीं लगा।


Hriday Bhoomi 24

हमारी एंड्राइड न्यूज़ एप्प डाउनलोड करें

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Leave A Reply

Your email address will not be published.