प्रदीप शर्मा, हरदा।
गले न मिलना तपाक से, कोई हाथ भी न मिलाएगा। कुछ ऐसा मिजाज हो गया है मेरे शहर का। देश के शायरी जगत में भोपाल के मशहूर शायर पद्मश्री डाॅ. बशीर बद्र के दिलों का यह दर्द मैंने भी कुछ दूसरे अंदाज में लिख दिया है। वे न केवल अच्छे शायर थे, बल्कि खूबसूरत तबियत के एक इंसान भी थे।
हुआ कुछ यूं कि भोपाल में एक नए-नए शुरू हुए दैनिक समाचार पत्र का शुरूआती जिम्मा मुझे 1995 के आसपास मिला था। तब उसके लिए कुछ खबरें व लेख तैयार कर उन्हें टाईप कराकर भेजने की जिम्मेदारी मुझ पर थी। इस दौरान बुधवारिया क्षेत्र के एक कंप्यूटर सेंटर पर बैठकर टाईप कराने दौरान मैंने अपने लेख में शायर बशीर बद्र जी की इसी शायरी को ‘कोट’ किया। यह पढ़कर आपरेटर ने कहा ये तो हमारे बशीर भाई का ‘शेर’ है। मैंने कहा कैसे तो आपरेटर ने फरमाया कि वे अपने एक संकलन को टाईप कराने यहां हर रविवार को दोपहर में आते हैं। तब मैने उनसे मिलाने का वादा लेकर अगले ‘सन-डे’ उसी कंप्यूटर सेंटर पहुंच गया। वहां न केवल महान शायर बशीर बद्र से मुलाकात हुई बल्कि उन्होंने मेरी डायरी में दो-चार नए शेर और लिखकर हस्ताक्षर के साथ अपना पता भी लिख दिया।
बहरहाल उनकी शायरी को तोड़-मरोड़कर यहां पेश करते समय मैं जिक्र कर रहा हूं उस चुनावी संग्राम का, जिसके बाद लोगों ने एक-दूसरे से मिलने में इतने फासले कर लिये।
सो मिजाज में परिवर्तन न लाएं जनाब, यहां फाकामस्ती में भी हम खूब जिए हैं ।
कम से कम मेरा शहर हरदा तो ऐसा नहीं था।