#भारत विदेश नीति : वार्ता की टेबल पर हार जाना हमारी आदत
दुनिया के सामने बार-बार उजागर हुआ है पाक का दोगलापन
प्रदीप शर्मा संपादक।
पहलगाम हमले के बाद भारत-पाक के बीच बढ़े तनाव में दोनों परमाणु शक्ति के मध्य युद्ध जैसे हालात बन चुके थे। देश भर में विद्यमान आक्रोश और स्थिति की नजाकत भांपते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को फ्री-हैंड देकर पाकिस्तान को लगभग घुटने पर ला दिया था।
3 दिन चले ड्रोन-वार में पाक के लगभग सभी सैन्य ठिकानों और एयर-स्पेस को भारी क्षति पहुंचाई थी। मगर ऐन मौके पर कूटनीतिक या रणनीतिक चूक के चलते पाकिस्तान एक बार फिर भारत को चकमा देने में कामयाब हो गया। इसे देखते हुए कहा जा सकता है कि हमारी जो लड़ाइयां मैदान में सेना जीत लेती है, वह हम वार्ता के टेबल पर गंवा देते हैं।
ड्रोन वार की रणनीति –
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हरी झंडी मिलने बाद पहलगाम हमले में पाक की संलिप्तता संबंधी सबूतों के आधार पर हमने सधी रणनीति अपनाकर सैन्य और सिविल एरिया में वार नहीं किए। ताकि हमारे देश पर युद्ध छेड़ने का आरोप न लगे। हमारी फौज ने भी बिना सीमा पार किए दुश्मन देश के आतंकी ठिकानों, एयरबेस आदि को ही क्षति पहुंचाई। इसके बाद जब पाक की हरकतें कम नहीं हुई तो दुश्मन देश पर कब्जा करने के लिए सेना द्वारा सीधे प्रवेश करने का ही विकल्प शेष बचा था। तभी पाकिस्तान ने कूटनीतिक चाल चल अमेरिका सहित अन्य देशों के सामने गिड़गिड़ाकर भारत को युद्धविराम के लिए मना लिया।
एफएटीएफ में कार्रवाई नहीं –
भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा लंबे समय से ‘एफएटीएफ’ की सूची में पाकिस्तान को लाने की बात कही जा रही है। ताकि आर्थिक संकट से जूझ रहे इस देश को किसी भी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था से आर्थिक मदद (ऋण) न मिल सके। जबकि इसके द्वारा आतंकवादी संगठनों को पोषित करने के खूब प्रमाण हमारे पास थे। इन्हें उचित स्तर पर न उठाने से इसे ब्लैक लिस्ट में नहीं लाया जा सका। और मौके का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने हाल ही में आईएमएफ से बड़ी मदद हासिल कर ली। जाहिर है वह इसका दुरुपयोग हथियारों की खरीदी करने में ही करेगा।
सीज फायर या विराम –
इधर दो दिनों के सीज फायर या युद्ध विराम का लाभ उठाते हुए कुछ ही घंटों में हथियार व ड्रोन जमा कर वह फिर से हमलावर हो गया। और हमारी सरकार पाकिस्तान सरकार का ध्यान सीज फायर समझोते की तरफ दिलाने में ही लगी रही। जबकि पाक सेना सीमा पार स्थित हमारे रिहायशी इलाकों में ड्रोन और बम से लगातार हमला करती रही।
राफेल का कोड नहीं-
कुछ वर्ष पूर्व हमारे द्वारा फ्रांस सरकार से राफेल विमानों की बड़ी खरीदी की गई थी। मगर आज तक फ्रांस सरकार ने उस विमान का वह कोड प्रदान नहीं किया जिसे ओपन कर हम अपनी स्वदेशी मिसालें इसमें अपलोड कर सकें। इससे हमला करने के लिए हमें सदैव फ्रांस सरकार से राफेल के लिए मिसालें लेना होगा। जो बड़ा महंगा होगा। यही कारण है कि स्वदेशी मिसायल लोड न कर पाने से हमारी सेना राफेल का उपयोग नहीं कर पाई है। इस प्रकार देखा जाए तो हम चाहें किसी भी बड़े युद्ध में कामयाब हो जाएं मगर वार्ता की टेबल पर हम सदैव बाजी हारे हैं। फिर चाहे वो शिमला समझोता हो या ताशकंद समझोता।