पहले चरण में 102 सीट पर घटा मतदान, नेताओं के होश उड़े
चुनाव आयोग द्वारा जागरूकता के बावजूद मतदान का प्रतिशत घटा
प्रदीप शर्मा संपादक हृदयभूमि
गत दिवस लोकसभा चुनाव के पहले चरण में देश के 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर मतदान का प्रतिशत घटने से तमाम नेताओं के होश उड़ गए हैं। हैरानी इस बात की कि 2024 के चुनाव में आयोग द्वारा तमाम जागरूकता लाने के बाद भी वोटिंग का एवरेज औसत ही रहा। इन राज्यों की बात की जाए तो इनमें अधिकांश ऐसे प्रदेश हैं जहां भाजपा का विशेष स्थान नहीं रहा। केवल आसाम को छोड़ दें तो वहां मुख्यमंत्री हेमंत विशेश्वर सरमा के कारण पूर्वोत्तर में बीजेपी का झंडा लहराता है। जबकि दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़कर शेष राज्य में भी केसरिया दल की हालत खराब रही।
वोटिंग के बाद जीत के दावे नहीं
हर बार वोटिंग के बाद राजनीतिक दल और उनके नेता यह दावा करते आए हैं कि उनकी पार्टी के पक्ष में बंपर मतदान हुआ है। मगर 2024 का यह चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में होने से, लगता है कि वोटिंग के बाद विपक्षी दलों को जैसे सांप सूंघ गया है। यह हम नहीं बल्कि नेताओं की जुबानी बयां करती है। उत्तर प्रदेश की मात्र 8 सीटों पर वोटिंग के बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने तो आरोप लगा दिया कि इन सीटों पर लोगों को डरा-धमका कर वोट डलवाए गए हैं। वहीं अन्य दलों के नेताओं ने स्वयं के पक्ष में मतदान की आस न जताते हुए केंद्र सरकार व आयोग पर निशाना साधने का जतन किया।
वोटिंग घटने का मतलब
बीते चुनावों की यदि बात की जाए तो वोटिंग का प्रतिशत बढ़ने पर भाजपा की जीत होना सुनिश्चित माना जाता था। यह एक आमधारणा थी कि एक वर्ग विशेष के लोग थोक में किसी पार्टी के पक्ष में मतदान करते हैं। इस कारण बीजेपी की जीत हेतु अन्य वर्गों का वोटिंग बढ़ना आवश्यक है। फिर भी इस चुनाव में 60 प्रतिशत मतदान होने पर कोई दल अपनी जीत का दावा नहीं कर रहा। यह मोदी की लोकप्रियता और कथित तौर पर रामलहर का ही अनुमान है कि तमाम नेताजी खुलकर दावे नहीं कर रहे हैं।
रणनीति अनुसार चला प्रचार अभियान
2024 का चुनाव अभियान भाजपा ने भी कुशल रणनीति से चलाया है। उत्तर भारत के राज्यों में नया नेतृत्व गढ़ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, आसाम जैसे राज्य इनके हवाले किए गए। जबकि लोकप्रिय नेताओं नरेंद्र मोदी ने प. बंगाल और दक्षिण भारत के उन राज्यों में प्रचार संभाला जहां भाजपा कमजोर मानी जाती रही। यही वजह है कि इस चुनाव में तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश सहित हैदराबाद आदि में हालात बदले हुए नजर आते हैं। हालांकि है कहना अभी मुश्किल है कि नतीजा क्या सामने आएगा। मगर विपक्षी दलों के बयान और उनकी बाडी लैंग्वेज से लग रहा है कि उन्होंने पहले ही हार मान ली।