मदन गौर, हरदा।
बालागांव के बालेश्वरधाम में महाशिवपुराण का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान कथावाचक पं. राजेश जी महाराज ने कहा बिना निमंत्रण मिले किसी के यहां कार्यक्रम में न जाएं। इस दौरान उन्होंने अनेक प्रसंगों का जिक्र कर धर्म प्रेमियों को ज्ञानलाभ दिया। उन्होंने बताया कि जब श्रीराम अपनी लीला बता रहे , उस समय शिव जी और देवी सती ने श्रीराम को देखा। शिव जी ने दूर से ही श्रीराम को प्रणाम कर लिया, लेकिन माता सती के मन में शंका थी।
श्रीराम दुखी थे, रो रहे थे, ये देखकर सती को इस बात पर भरोसा नहीं हुआ कि यही शिव जी के आराध्य हैं और सीता का रूप धारण करके सती माता ने ली श्रीराम की परीक्षा
देवी सती सीता का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं। देवी को देखते ही श्रीराम ने उन्हें प्रणाम किया और कहा कि देवी आप यहां अकेले कैसे आई हैं, शिव जी कहां हैं?
श्रीराम की ये बातें सुनते ही देवी सती को अपनी गलती का एहसास हो गया और वे चुपचाप शिव जी के पास लौट आईं। शिव जी ने सती से पूछा कि क्या आप ने राम जी परीक्षा ले ली?
देवी सती को पछतावा हो रहा था, डर की वजह से उन्होंने शिव जी से झूठ बोल दिया कि मैंने राम जी परीक्षा नहीं ली और मैं तो दूर से ही प्रणाम करके वापस आ गई हूं।शिव जी देवी सती को जानते थे वे किसी भी बात पर आसानी से भरोसा नहीं करती हैं। उन्होंने ध्यान किया तो उन्होंने मालूम हो गया कि सती ने श्रीराम की परीक्षा ली है और फिर झूठ भी बोल रही हैं।
शिव जी ने सती से कहा कि आपने मेरे आराध्य राम की परीक्षा ली है और फिर झूठ भी बोला है, इसलिए मैं आपका मानसिक त्याग करता हूं।इस घटना के कुछ समय बाद देवी सती के पिता प्रजापति दक्ष ने यज्ञ आयोजित किया, लेकिन शिव जी और सती को नहीं बुलाया।
जब ये बात देवी सती को मालूम हुई तो वे पिता के यहां जाने की जिद करने लगीं। शिव जी समझाया कि बिना निमंत्रण हमें वहां नहीं जाना चाहिए, लेकिन देवी सती नहीं मानीं। यज्ञ स्थल पर दक्ष ने सती के सामने ही शिव जी के लिए अपमानजनक बातें कही तो देवी दुखी हो गईं। अपने पति का अपमान सुनकर देवी सती ने वहीं उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी देह का अंत कर दिया।
आयोजक राजू नर्मदा प्रसाद गोस्वामी परिवार एवं समिति के सदस्यों ने बाहर से आऐ हुऐ देवतुल्य अतिथियों मेहमानों का तिलक लगाकर सम्मान किया कथा के बाद में आरती पुष्पांजलि के बाद प्रसाद वितरण किया