प्रदीप शर्मा संपादक
शराब घोटाले के मामले में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री अरविन्द्र केजरीवाल द्वारा अपने पद से इस्तीफा दिए जाने को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता इसे राजनीति बड़ा त्याग और आदर्श बताने की कोशिशें कर रहे हैं। जबकि केजरीवाल चाहते तो मामले में अरेस्ट होने के तत्काल बाद वे उसी तरह पद से इस्तीफा दे सकते थे, जिस तरह कि उन्होंने तत्कालीन मंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी बाद उनसे त्यागपत्र ले लिया था।
नैतिकता, आदर्श नहीं, बस खेला-
मगर इसके विपरीत वे जेल में रहते हुए पद पर बने रहे और वहीं से सरकार चलाने का नया रिकॉर्ड भी बनाया। दरअसल उनका यह इस्तीफा उतना सरल नहीं है, जितना कि दिखाने की कोशिशें की जा रही है। इसके असल कारण क्या हैं – क्या यह उनका नैतिक आदर्श है, या यह राजनीतिक मजबूरी अथवा कोई नया खेल। जानते हैं इस खेल का असल मकसद क्या है।
दरअसल इस्तीफे का यह ढोंग उनका कोई आदर्श-वादर्श नहीं है, बल्कि केजरीवाल की मजबूरी और विवशता के साथ बड़ा खेला भी है। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत देते समय जो हिदायतें दी हैं, उनका पालन करते हुए वे वह सब कुछ नहीं कर पाते, जो वे अपनी जगह किसी डमी को बैठाकर मामले के साथ खेला कर सकते हैं।
क्या हैं मजबूरी-
कोर्ट की हिदायतों के अनुसार वे सीएम रहते घोटाले से संबंधित किसी भी फाईल को नहीं देख पाएंगे, उन्हें अत्यंत आवश्यक बिलों पर विशेष स्थिति में साईन करने का अधिकार होता, वे मामले से जुड़े किसी भी गवाह पर को राजनीतिक दबाव नहीं बना सकते हैं। ऐसी स्थिति में पद से त्यागपत्र देने का खेल हुआ है।
जनता में सकारात्मक संदेश –
पद से हटने के बाद जो भी नेता आएगा वह केजरीवाल के इशारे पर ही काम करेगा। इधर वे मनीष सिसोदिया के साथ जनसंपर्क करते हुए अपने त्याग का प्रचार कर आमजन मानस में छाने का प्रयास करेंगे सो अलग।
तो कौन बनेगा नया मुख्यमंत्री –
अब सवाल उत्पन्न होता है कि केजरीवाल के हटने बाद उनकी जगह कौन लेगा जो उनका खास और विश्वासपात्र हो। सो इसकी सूची तो बहुत लंबी है, मगर इसमें दो नाम ही छनकर सामने आ रहे हैं। इसमें आप नेता आतिशी और दूसरे नंबर पर सुनीता केजरीवाल का नाम प्रमुख है। माना जाता है कि घोटाले संबंधी पूछताछ दौरान केजरीवाल के एक बयान से आतिशी का नाम भी उछला था। इन हालातों में उन्हें यह दायित्व सौंपना किसी जोखिम की तरह है। फिर केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल को लाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में उन्हें छह माह के भीतर किसी सीट को खाली कराकर चुनाव लड़ाना होगा। अब आगे-आगे केजरीवाल क्या स्वांग रचते हैं यह देखना ही बाकी है।