प्रदीप शर्मा संपादक
अपने कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज के बीच से नया चेहरा चुनकर सामने लाने और उसे तराशकर किसी हीरे की तरह चमकाकर आमजन में लोकप्रिय बनाने की कला में भाजपा का हार्डकोर काफी पारंगत है। याद करें पार्टी ने उमा भारती के नाम ऐतिहासिक जीत हासिल कर अपनी सरकार बनाई थी। फिर कतिपय राजनीतिक हलचल के बीच उनके पदत्याग बाद वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर को सामने लाना और फिर इनके बाद नवोदित युवा नेता शिवराजसिंह चौहान को प्रदेश की कमान सौंपा जाना। इन सारे घटनाक्रमों को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है। यह अलग बात है कि शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी से मिली इस चुनौती को बखूबी संभाला बल्कि पार्टी को 18 वर्ष सत्ता की पहली कतार में शामिल रख, इसे अंतिम पारी में लगभग तीन-चौथाई बहुमत तक पहुंचाया। ऐसी स्थिति में पार्टी विधायकों की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिए एक नए चेहरे डाॅ. मोहन यादव के नाम की घोषणा होने से किसी को चकित होने की जरूरत नहीं है। अलबत्ता आज सत्ता की कमान छोड़ते हुए श्री चौहान को इस बात का संतोष अवश्य होगा कि वे अपने दल की हर उम्मीदों पर खरे उतरे।
देश के तमाम राजनीतिक विश्लेषक यह बात भली-भांति जानते हैं कि नए चेहरों को लाने और उन्हें कद्दावर नेता बनाने की कला भाजपा के पास है। ऐसे समय जब 4 महीने बाद लोकसभा चुनाव के इम्तिहान की घड़ी सामने है, तब नवोदित नेता डाॅ. मोहन यादव को सामने लाना कोई जुआ तो नहीं। मगर ऐसे कयास लगाने वालों को जान लेना चाहिए कि जब पार्टी में कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल के साथ शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता सामने हों तब मालवांचल के जमीनी नेता डाॅ.यादव पर खेला गया दाव विफल नहीं होगा। यहां उनके साथ मुश्किलों को आसान बनाने वाले नेताओं का हाथ है। फिर भी उनके समक्ष उम्मीदों पर खरा उतरने के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह द्वारा खींची गई लकीरों से आगे बढ़ने की चुनौती तो रहेगी इसमें दो राय नहीं। बहरहाल सभी राजनीतिक विश्लेषक इस बात से आश्वस्त हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और गृहमंत्री अमित शाह की रणनीतियों के साथ डाॅ. यादव प्रदेश में विकास की नई इबारत लिखने में कामयाब होंगे।