
प्रदीप शर्मा संपादक।
कांग्रेस की एक नेत्री मोहतरमा शमा मैडम ने बयानों का क्रिकेट खेलते हुए अपने बयान भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी मो. शमी से शुरू कर, अब इसे एक नई इबारत तक ले जाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। उनका जो भी मकसद हो वह वे ही जानें मगर उनके नए विचारों पर सवाल तो होंगे ही। हम शमी साहब (क्रिकेट टीम इंडिया के गौरव) से क्षमा याचना सहित कतिपय इन बयानों पर अपनी राय साफ-साफ बता रहे हैं।
-पहली बात तो यह कि उन्होंने अभी-अभी गणित और इस्लाम को जोड़ने का जो ज्ञान दिया है उसका हमारी भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी मो. शमी से कोई नाता नहीं है। मगर मैडम के बयानों से देश और दुनिया में भ्रम न फैले यही मेरी गुजारिश है।
-सबसे पहले उन्होंने चैंपियन ट्राफी में लगातार जीत रही भारतीय क्रिकेट टीम में अपने विचारों का कलुष घोलकर इसे धार्मिक आधार पर जोड़ने की कोशिशें की। जब उनकी पार्टी ने इससे पल्ला झाड़ा और बात उल्टी पड़ गई तो मोहतरमा ने बयान में सुधार करने का जतन भी किया है।
-यूं भी भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार है तो स्वयंभू ज्ञानियों को बोलने के लिए पूरी-पूरी स्वतंत्रता है।
अब इन चर्चाओं में आई मोहतरमा ने इस्लाम और गणित को जोड़कर नया किस्सा बयां करने की कोशिशें शुरू की हैं। हो सकता है उनके पास ऐसे कतिपय दस्तावेज, प्रमाण, माइल स्टोन, मूर्ति प्रतिमा और अन्य साक्ष्य हों। मगर ईसा से पहले इस्लाम के होने का इतिहास मैडम को बताना चाहिए कि गणित का सिरा (सूरा) तब कहां था। कम से कम मोहतरमा अपने गूगल गुरू से ही कुछ पूछ लें।
गणित संभव नहीं, बिना शून्य –
जब तक गणित में शून्य और आर्यभट्ट का दश्मवल नहीं आया था, तब तक आधुनिक गणितीय गणना की परिकल्पना करना भी संभव नहीं था। इसलिए मोहतरमा को एक बार फिर शोध करना चाहिए, ध्यान रहे तमाम शोध की पुष्टि किताबों से नहीं ऐतिहासिक चिन्हों और प्रमाणों से होती है।
इसे भी देखें भद्रजन-
: शून्य की खोज भारत में हुई थी. शून्य को भारत का एक अहम आविष्कार माना जाता है. शून्य की जानकारी कई जगहों पर मिलती है, जैसे बख्शाली पांडुलिपि, ग्वालियर के मंदिर की दीवार और ब्रह्मगुप्त की किताब.
-शून्य की अवधारणा का आविष्कार भारत में पांचवीं शताब्दी में हुआ था.
