- प्रदीप शर्मा संपादक
पहले कभी मैंने कभी देखा नहीं,
आज कुछ अनमनी थी मेरी भैंस प्यारी।
– बड़े नाजो-ख्याल से मैंने रखा था उसका ध्यान। मगर आज शायद बैठ न गई हो।
– दोस्तों कहानी है उस भैंस की जो लोगों ने चुनाव में पाली थी और वह भी दर्द भरी। सबसे पहले मैं आपको बता दूं कि मैंने कि मैंने कभी भैंस पाली नहीं, और न मेरा उससे कोई प्रत्यक्ष नाता रहा।
यह जरूर है कि डेरी से दूध लाते समय गाढ़े दूध का लालच देकर मुझे गाय के स्थान पर भैंस माता का दूध मिला। इसके लिए भी उन्हें मेरा प्रणाम।
– छोड़िए ये सारी बातें व्यवहार जगत में भैंस और गाय के साथ मेरा रिश्ता बहुत पुराना है। इसकी बातें करेंगे तो उम्र बीत जाएगी कि किसका दूध गाढ़ा और किसमें ‘सोना’ है। ये दोनों हमारी माता हैं ।
– बहरहाल यहां बात गाय-बैल और भैंस की नहीं अपने चुनाव की है। कौन बनेंगे हमारे नेताश्री इसकी चिंता आम है। इसका हम सभी अभी करें इंतजार जो आने वाला है। याद रखें इन्हीं दिनों की बकवास, अपने आगे के 5 साल खराब कर देगी।
– सो बात इतनी है कि अपने भरोसे की ये भैंस बैठ न जाए।
यूं भी न माने तो जा भैंस पानी में।