ये कैसी समानता पार्ट 2 : याद है कैसे कांप उठी थी जमीं
उन दोषियों का क्या हो, जो थे पर्दे के पीछे जिम्मेदार
प्रदीप शर्मा संपादक हृदयभूमि।
शायद किसी को याद नहीं कि कैसे कांप उठी थी हरदा की ये जमीं, पूरे 40 किलोमीटर।
खबर के पहले एपिसोड में हमने कुछ बातों की ओर संकेत दिया था। मगर हमारे सवाल अभीभी लूप लाइन में हैं ठीक उसी भोपाल गैस कांड की तरह।
– बहरहाल हरदा में ये सवाल तो जिंदा रहेंगे ही कि किन जिम्मेदारों की लापरवाही से सुलग गई थी ये आग।
– आपको बताते चलें कि बैरागढ़, रहटा में जब राजू अग्रवाल या सोमेश अग्रवाल की फटाका फैक्ट्री बनी तब यहां ग्राम पंचायत थी और चारों ओर सिर्फ खेत थे। तब जहां एक बारूद कारखाना है तो आसपास रहवासी मकानों या कालोनी की अनुमति कैसे मिली ?
– स्थानीय प्रशासन ओर नगरपालिका ने इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया ?
– यहां नगरपालिका ने प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ कैसे दे दिया?
– जब यह बैरागढ़ शहरी क्षेत्र में जुड गया तो नगरपालिका स्थानीय प्रशासन ने बने मकान का टैक्स क्यों तय नहीं किया। जबकि बगैर अनुमति के अनेक हजारों मकान बने और पीएम आवास योजना की राशि भी दे दी।
– यहां बिना डायवर्सन के मकान बनने पर उपयंत्री पर भी रिकवरी होनी चाहिए।
– और यह भी कि अति कम भाव संपत्ति नीलामी का हर्जाना कौन भुगतेगा।
अंत में सवाल यह भी कि यदि उद्योगपति आकर अपना करोड़ों लगाकर लोगों, युवाओं को रोजगार दे रहे हैं तो क्या विधिवत अनुमति से चल रहे इनके कारखानों में घटना-दुर्घटना का असल जिम्मेदार कौन? पूछता है हरदा का आवाम।