November 13, 2025 |

#पीसीआई : पत्रकारों की दशा भी जानें, बिना डिग्री के स्तर तो पहले भी ठीक था

पत्रकारों की न्यूनतम योग्यता तय करेगी समिति

Hriday Bhoomi 24

प्रदीप शर्मा संपादक 

एक मजेदार बात लंबे समय से ‘सोशल मीडिया’ पर वायरल हो रही है हम इसकी पुष्टि न करते हुए बता रहे हैं कि जारी उक्त खबर के अनुसार भारत सरकार की भारतीय प्रेस परिषद नामक संस्था देश में पत्रकारिता के गिरते स्तर को लेकर चिंतित है।

इस परिषद के सदस्यों में वे स्वनामधन्य सदस्य भी विद्यमान हैं जिन्होंने मध्यप्रदेश एवं देश के बड़े दैनिक समाचार पत्र में लंबे समय तक सेवाएं दी थी। इस लिहाज से यह सवाल उठना लाजिमी है कि उपरोक्त समूह से उनके हटने के बाद पत्रकारिता का स्तर गिरा या यह गिरने की शुरूआत पहले ही हो चुकी थी। बता दें कि सरस्वती पुत्र श्रवण गर्ग की कलम का तब देश एवं प्रदेश में काफी तहलका था। और खबरों के प्रकाशन संबंधी सभी जिम्मेदारी अखबारों के संपादक की होती है। 

(पीसीआई की उपरोक्त बैठक में शामिल सदस्यों की हम यहां कोई पुष्टि भी नहीं कर रहे। मगर इस संबंध में किसी अखबार की कतरन जरूर वायरल है। 

पत्रकारिता का स्तर कैसेे तय-

मान लिया कि अंचल में बैठे छोटे कथित पत्रकार कुछ भी खबर लिखकर भेजते हैं/ और समाचार जगत के प्रतिष्ठित घराने उन्हें प्रकाशित कर पत्रकारिता का सत्यानाश कर रहे हैं। तब वहां बैठे ऐसे मठाधीश संपादक क्या कर रहे थे। इसका जवाब हमें चाहिए भी नहीं। मगर सवाल यह है कि पत्रकारिता का स्तर उनसे पहले के कार्यकाल में घटा, या बाद में अचानक बड़ी सी गिरावट आ गई। 

कभी पीसीआई यह भी सोचे-

यह अदना सा कथित पत्रकार उपरोक्त बैठक संबंधी खबर को लेकर यह सवाल करना चाहता है कि पीसीआई देश में प्रजातंत्र के इस कथित चौथे स्तंभ में सबसे निचले स्तर पर काम करने वाले उन पत्रकारों की दशा पर भी विचार करे, जो बिना तनख्वाह, बिना मानदेय, बिना पारिश्रमिक के इतने बड़े समाचारपत्र ग्रुप्स को चलाने में दिनरात काम करते हैं। फिर चाहे अखबार का प्रसार हो, समाचार क्षेत्र हो या अन्य दबाव। कभी इस वर्ग की भी जरा चिंता हो जाए तो बहुत है। 

इन्हें भी छान लें –

पत्रकारिता क्षेत्र में कोर्स तो अभी कुछ वर्षों पूर्व शुरू हुए हैं। इसके पहले हमारे मध्यप्रदेश में एक प्रतिष्ठित अखबार नई दुनिया इंदौर में रहकर बड़ा लेखन करने वाले स्व. राहुल बारपुते साहब और महान लेखक व पत्रकार स्व. राजेंद्र माथुर साहब को भला कौन भूल सकता है, जिनके नाम पर मध्यप्रदेश सरकार बड़े अवार्ड जारी करती है। 

इसी तरह महान लेखक व संपादक श्रद्धेय धर्मवीर जी भारती के समय कौन सी डिग्री थी। जब लेखन व पत्रकारिता में बड़े झंडे लगाए गए। उनके मार्गदर्शन में तब कितने महान पत्रकारों की पीढ़ी सामने आई। यहां उन सभी का जिक्र करने की आवश्यकता नहीं है। हमारा कहना है कि समाज और देश के प्रति अच्छा लेखन करने वाले पत्रकार जरूरी हैं। बाबई के महान लेखक व पत्रकार स्व. माखन लाल जी चतुर्वेदी की स्मृति में तो पत्रकारिता का एक विश्वविद्यालय ही चल रहा है।

यह पीड़ा इसलिए – 

इसलिए बेहतर यह होता कि प्रेस कौंसिल उन छोटे पत्रकारों की स्थिति व दशा का ध्यान कर उनके प्रशिक्षण व आर्थिक उत्थान के बारे में विचार करती, ताकि इसमें जरूरी सुधार आएं। अन्यथा प्रजातंत्र के इस कथित चौथे स्तंभ का तो व्यवस्था में कहीं कोई जिक्र ही नहीं है, कार्यपालिका द्वारा सिवाय इसे कोसने के। 

क्या है वायरल वह खबर उसे हूबहू जाने –

पत्रकार बनने के लिए न्यूनतम योग्यता तय नही होने के कारण देश में रिपोर्टिंग के स्तर पर असर पड़ रहा है। इसको देखते हुए भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू ने पत्रकारिता की न्यूनतम योग्यता तय करने के लिए एक समिति का गठन किया है। समिति में जागरण प्रकाशन समूह के अखबार नई दुनिया के संपादक व पीसीआइ सदस्य श्रवण गर्ग, राजीव साब्दे और पुणे विश्वविद्यालय के संचार व पत्रकारिता विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. उज्ज्वल बारवे शामिल हैं। काटजू ने कहा कि वकालत के लिए एलएलबी की डिग्री के साथ बार काउंसिल में पंजीकरण जरूरी

अयोग्य पत्रकारों के कारण गिर रहा है रिपोर्टिंग का स्तर है। चिकित्सा क्षेत्र के लिए एमबीबीएस डिग्री और मेडिकल काउंसिल में पंजीकरण जरूरी है, जबकि पत्रकारिता में शुरुआत करने के लिए कोई न्यूनतम योग्यता तय नहीं है। कुछ लोग पत्रकारिता के मामूली या अधूरे प्रशिक्षण के साथ इस पेशे में आ रहे हैं। इससे बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे गैरप्रशिक्षित लोग पत्रकारिता के उच्च मूल्यों को बरकरार नहीं रख पाते। कुछ समय से पत्रकारिता में शुरुआत करने के लिए न्यूनतम योग्यता तय करने की जरूरत महसूस की जा रही है। समिति की रिपोर्ट पूर्ण प्रेस काउंसिल के सामने रखी जाएगी। इसके बाद इसे कानून बनाने के लिए सरकार के समक्ष पेश किया जाएगा।


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