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- प्रदीप शर्मा संपादक
आज के दौर में यह सवाल सभी के मन में है कि वे कौन लोग हैं जिन्होंने अपने रसूख और सिक्के के दम पर इस तरह कब्जा कर लिया कि लोग अखबारों को रद्दी और न्यूज चैनलों को बकवास मानने लगे। कौन हैं वे लोग जो देश के सबसे पावन पेशे पत्रकारिता को रसातल में पहुंचाने की कोशिशें करते रहे। अलबत्ता वर्षों से कमाई इस पेशे की खूबी यह कि पत्रकारों को कोसने वाले लोग रोज सुबह-शाम अखबारों में प्रकाशित और प्रसारित खबरों को जरूर देखते और पढ़ते हैं।
वो जमाना गया-
खादी का कुर्ता पजामा पहने श्रद्धेय गणेश शंकर जी विद्यार्थी फिरंगियों से लोहा लेते थे। तब ट्रेडल मशीन पर छपने वाले ऐसे अखबारों को कोई सरकारी मदद या विज्ञापन भी नहीं मिलते थे। तब जुनून इतना और लेखनी भी इतनी पैनी थी कि उस दौर के पत्रकारों के सम्मान में अच्छे अफसर भी सैल्यूट बजा लाते थे। आज के समय में आए पत्रकारिता के पतन का असल राज भी यही है। क्योंकि विचारों और चिंतन को उगलने वाली सरिता सूखने लगी है।
– कलमकारिता में आई गिरावट का एक महत्वपूर्ण कारण है हमारी सरकारें भी हैं। सन 1975 में प्रेस सेंसरशिप ने अखबारों का क्या हाल जानें। कैसे इस सेंशरशिप ने अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं को असमय मौत के घाट सुला दिया। उस दौर में राजेंद्र माथुर के संपादन में प्रकाशित नवभारत टाइम्स, रघुवीर सहाय और चिंतक दार्शनिक अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित दिनमान, महान साहित्यकार लेखक व पत्रकार धर्मवीर जी भारती के धर्मयुग का क्या हश्र हुआ।
– सरकारी दुराग्रह और नीतियों के खेल में हाल ही इंदौर के एक मशहूर दैनिक समाचार पत्र को बेचने की नौबत आई, यह सारी बातें किसी से छिपी नहीं है। ऐसे अनेक कारण हर समय व कालखण्ड में रहे, जिसने पत्रकारिता को तिल-तिलकर खत्म किया। नए दौर में नया पैटर्न भी सामने आया है, अब सियासतदान, धनकुबेर और दलाल मीडिया को खरीद लेते हैं। इससे यही अखबार रद्दी और न्यूज चैनल बकवास बनते दिखाई देने लगे हैं।
–अब इसके स्थूल शरीर में लहू तो रहा नहीं, शेष बची मज्जा को बचाने चिंतनशीलता वाली पत्रकारिता ही इसे जिला सकती है। संकट के इस दौर में असली और नकली पत्रकारों के बीच फर्क कर कलम कि सम्मान भी जरूरी है। साथ ही पत्रकारों को कोसने वाले प्रबुद्धजनों को भी स्वच्छ लेखन का सम्मान कर इसे परवान चढ़ाने आगे आना होगा, तभी खत्म होती पत्रकारिता राख के उस ढेर से उठकर फिनिक्स की तरह सामने आ जाएगी। अन्यथा इस जमाने में कलम के दुश्मनों की कोई कमी नहीं है।
#प्रदीप शर्मा
सीनियर जर्नलिस्ट हरदा।
मो. 7691937626