(फोटो साभार )
प्रदीप शर्मा संपादक
इस बार के लोकसभा चुनाव में राजनेताओं के बीच जो आपसी लड़ाई और खींचतान चल रही है। उसमें कई बार कुकरहाव और बंदरहाव का जलवा 😊 मुफ़्त देखने को मिल जाता है।
आप कहेंगे कि कुकरहाव तो देखाभाला है मगर ये बंदरहाव कैसा? तो मित्रों ‘मानवचरित’ बताने के लिए दार्शनिकों और विचारकों ने दो प्रकार के हाव माने हैं।
एक प्रकार का हाव जिसे कुकरहाव कहा गया है, इसमें कुकर प्रजाति के झुंड भूं-भूं करते हुए एक दूसरे पर लपकते हैं। ये कई बार एक-दूसरे से भिड़ जाते है। तब पराजित झुंड किसी तरह अपनी दुम दबाकर भाग लेता है। विचारवान लोग इसे कुकरहाव मानते हैं।
दूसरे प्रकार का हाव थोड़ा भिन्न है- इसमें वानरों के दो झुंड आपस में लड़ते हैं। मगर खासियत यह कि इनके दोनों झुंड खों-खों करते हुए एक दूसरे की तरफ लपकते हैं। और एक दूसरे के कुछ करीब आकर बिना किसी के समझाए या बिना लड़े वापस हो लेते हैं। फिर वापस लौटकर ये फिर उसी अंदाज में फिर लपकते और वापस लौट आते हैं। विचारकों ने इसे बंदरहाव की संज्ञा दी है।
तो इस चुनाव में यह देखने में आया है कि अब आरएसएस का रोना-धोना कुछ दलों ने एकाएक बंद कर दिया है। धीरे-धीरे कुछ उद्योगपतियों के नाम पर कोसना भी बंद हो गया। हैरानी इस बात की भी है कि अब तक ईव्हीएम पर आरोप लगाने वाले नेता उसे भूलकर तीसरे चरण के बाद स्वयं के गठबंधन की जीत का आलाप अलापने लगे हैं।
वहीं कुछ दल व नेता जो दूसरे दल खूब आरोप लगाते आए हैं वे जांच एजेंसियों का भय देखकर दूसरी पार्टी में शामिल होने की कवायद कर रहे हैं।
अब इन दोनों अलग-अलग प्रकार की गतिविधियों को कौन से हाव के रूप में याद किया जाए। आप ही बताना। हां वैसे ये दोनों प्रकार के हाव हैं बड़े ही दिलचस्प।