प्रदीप शर्मा संपादक
लोकसभा चुनाव 2024 में अपेक्षित परिणाम न मिलने के बाद सत्तारूढ़ दल के भीतरी खाने में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आगामी 2029 के चुनाव में वह कौन सा चेहरा होगा जिसके नाम पर वोट हासिल कर सकें। वो इसलिए कि ऐसे ही सवाल अन्य दलों में पूर्व के चुनावों बाद हुए और समय काल के साथ-साथ उन दलों में भी ऐसे अनेक नेताओं का अभ्युदय हुआ, जो दल के तारणहार बने।
यहां हम चर्चा कर रहे हैं असल मुद्दे पर कि आगामी लोकसभा चुनाव 2029 में सत्तारूढ़ दल भाजपा की ओर से ऐसा कौन नेता होगा जिसे विपक्ष के सामने लाया जाएगा। यह विचार प्रबुद्ध वर्ग में बना हुआ है। चूंकि यहां कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी इत्यादि में युवा नेताओं की पीढ़ी तैयार है। सो वहां फिक्र की कोई गुंजाइश नहीं। मगर भाजपा में मोदी के बाद कौन होगा नई पीढ़ी का नेता, इस पर राजनीतिक जगत में चर्चा जारी हैं।
यहां विचारणीय है कि भारतीय जनसंघ फिर भाजपा द्वारा नेहरू के जमाने में तराशे गए युवा नेता अटल बिहारी वाजपेयी कालांतर में अपनी ओजस्वी वाणी तथा चिंतना से मुल्क के आवाम की आवाज बने थे। सो अब यहां भी आगामी पीढ़ी के नेताओं का सामना करने किसी नेतृत्व को तराशने की तैयारी अवश्य होगी। देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जो अपनी नेतृत्व क्षमता से यूपी में मुख्यमंत्री रहने बाद देश की सुरक्षा कमान हुए हैं। क्या वे इस दायित्व को संभालेंगे। तो जवाब शायद न में होगा। क्योंकि यहां चर्चा भावी युवा पीढ़ी और नए नेतृत्व को सामने लाने की हो रही है।
-यूं भी राजनाथ संघ की राजनीति में तपे पुराने त्यागी विचारधारा के राजनेता हैं, उन्होंने 2014 में तब प्रधानमंत्री पद के लिए अपना नाम सामने न लाते हुए गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सामने लाकर जीत का हार पहनाया था। तब वे दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। यहां हम अमित शाह के नाम की भी चर्चा नहीं कर सकते, क्योंकि वे केवल मोदी के साथ हैं और रहते ही रहेंगे। वैसे भी ये दोनों नेता पुरानी पीढ़ी के होने के कारण नए जमाने की युवा पीढ़ी के सामने लाए जाएंगे कहना मुश्किल है।
अभी नहीं तो फिर मुश्किलें …
यहां बताना आवश्यक है कि यह आलेखक मोदी के नेतृत्व खारिज न करते हुए आने वाली पीढ़ी के भाजपा नेताओं की संभावना पर विचार कर रहा है। सो लोकसभा चुनाव 2024 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 400 पार का आंकड़ा लेकर चले थे। तब ऐसा क्या हुआ कि यह दल 2014 और 2019 के लक्ष्य को पार करने के स्थान पर मात्र 240 पर सिमट गया। इसलिए पार्टी को चिंतन करना लाजिमी है। यूं भी अब सभी दलों में बुजुर्ग होते नेताओं को अन्य दायित्व सौंपे जा रहे हों तो बीजेपी भी इससे कोई अलग नहीं।
फिर कौन होंगे नई पीढ़ी के दारोमदार
इसलिए पार्टी में उन ओजस्वी और तेजस्वी नेताओं की बात राजनीतिक जगत में चल रही है जो धीरे-धीरे दल की फ्रंटसीट पर आते दिखाई दे रहे हैं।
ऐसे नेताओं में फिलवक्त तीन नेताओं के नाम सामने नजर आते हैं, जिन्हें शायद भाजपा और संघ ने फ्रीहैंड दे दिया है। इनमें यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ, असम के हेमंत विशेश्वर सरमा और उत्तराखंड के पुष्कर सिंह धामी प्रमुख हैं।
पार्टी में ये वे नेता हैं, जिन्हें गुजरात से मोदी की तरह सीधे केंद्र में लाया जा सकता है। जिस प्रकार वे खुलकर काम कर रहे हैं उससे लगता है कि दल से उन्हें इशारा मिल चुका है। इसमें आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत विशेश्वर सरमा का नाम प्रमुख है। उन्होंने बांग्लादेश संकट के पहले से ही एकतरफा लाईन हिंदू हित पर केंद्रित होकर काम कर राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति बटोरी। वहीं उत्तराखण्ड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता लाने की दिशा में वह कदम उठाए जो आबादी के मान से कोई और नेता हिम्मत नहीं जुटा पाता। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कार्य नहीं कर पाए बल्कि ‘सबका साथ-सबका विकास’ की बातें कर चुनाव में अपेक्षित परिणाम नहीं ला पाए।
यूपी सबसे अलग
इधर आगामी विधानसभा उपचुनावों और अगले वर्ष विधानसभा के मुख्य चुनाव से पूर्व फुलफार्म में आए यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ की चर्चा राजनीतिक जगत में तेज हैं। वो इसलिए इसी राज्य में लोकसभा चुनाव दौरान पार्टी को अपेक्षा के विपरीत काफी नुकसान के बाद वे खुलकर काम कर रहे हैं।
योगी में ऐसा क्या खास
सबसे खास बात यह कि जब योगी को यूपी की कमान सौंपी गई थी, तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि कोई भगवाधारी संत सत्ता की कमान इतनी कुशलता से संभाल सकता है। योगी ने न केवल यह सब किया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले बाद भव्य राम मंदिर बनाकर अयोध्या को तीर्थ रूप में विकसित किया। उनके कार्यकाल के पूर्व जो प्रदेश बीमारू राज्य था, वहां औद्योगिक क्रांति और सड़कों, विकास का ऐसा द्वार खुला कि आज यह देश के प्रथम श्रेणी वाले राज्यों में शुमार है।
वर्तमान समय जिस तरह योगी कार्य कर रहे हैं उससे लगता है कि भाजपा से अगला प्रधान मंत्री फिर यूपी से लाने की योजना पर ध्यान केंद्रित है। यदि कोई राजनीतिक खेल नहीं हुआ तो लोकसभा चुनाव में इन्हीं नेताओं में से किसी को प्रोजेक्ट कर भाजपा द्वारा चुनाव लड़ने की तैयारी हो सकती है।