प्रदीप शर्मा संपादक।
धर्म संस्कृति और जात-पात की राजनीति उन्हें मुबारक जो वोटों के खेल में इंसान को इंसान से जुदा कर देते हैं। अच्छा हुआ आज यह खेल भी खत्म हुआ और मैं जियूंगा आगामी पांच साल तक सुकून के साथ।
– बैठा था मैं अपने घर पर, वे आए, बैठे मेरे साथ और वोट डालने का वादा लेकर, कुछ देर में आने का कहकर चलते बने। हमें क्या, हम तो पहले भी हल-बख्खर, तगारी, गेंती-फावड़ा लेकर काम कर अपना जीवन बिताते आएं हैं, आज ये न आते या आते भी तो हमें क्या फर्क पड़ जाता। वही जिंदगी और वही फटेहाल मुझे बिताना होगा, आज या कल ये न भी आएं तो क्या बदल जाएगा इस जिंदगानी में।
- -सुना है कि 4 जून तक मेरे आसपास के गांवों में खूब हो-हल्ला रहेगा। तब तक मुझे भी चादर तानकर चैन की बंशी बजानी होगी। मुझे तो यह कहना ह कि ये फिर लौटकर न आएं मेरे द्वारे, यह बताने कि रावण और मेघनाद तुम्हारे नहीं किसी बामन के हैं। इसलिए अब मुझे पांच साल इनकी चुगलखोरी से बचना होगा, हे राम!