हरदा। मानसून पर आधारित पीला सोना फसल सोयाबीन की खेती आज किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गई है। पिछले कई वर्षों से अनियमित मानसून के चलते पर्याप्त उत्पादन नहीं हो रहा है। और न ही विगत 10 वर्षों से किसानों को इसकी लागत मूल्य मिल पा रहा है। सोयाबीन के भाव को लेकर जो किसानों ने एक आंदोलन की रूपरेखा बनाई है। उसे जिले के व्यापारियों को भी हर संभव मदद कर सफल बनाना चाहिए। यह उदगार अहलवाड़ा के किसान महेंद्र सिंह गोदारा (जीवन पटेल) ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बीते 10-12 वर्षों से सोयाबीन के भाव नहीं बढ़ रहे हैं, जबकि इसकी लागत अत्यधिक होने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। सोयाबीन के भाव वर्तमान में 3 हजार से लेकर 4 हजार क्विंटल तक चल रहे हैं, जबकि लागत को देखते हुए 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल से अधिक भाव होना चाहिए। श्री पटेल ने कहा कि मैं एक किसान के रूप में बात कर रहा हूं। मेरा विरोध सरकार से नहीं, बल्कि उन नीतियों से है, जिससे किसानों को हानि हो रही है। जिले में आज जो किसान अपने हक की मांग कर रहे हैं, वह सभी दलों से संबंधित है। हरदा एक कृषि प्रधान जिला है, यदि किसानो को उनकी फसल का लाभकारी मूल्य मिलेगा तो व्यापारियों का व्यवसाय भी बढ़ेगा। इसलिए व्यापारियों को किसानो का समर्थन करते हुए 13 सितंबर को होने वाले आंदोलन को पूर्ण रूप से सफल बनाना चाहिए। श्री पटेल ने कहा कि हमने देखा है कि जिस अनाज की उपयोगिता कंपनी और बड़े-बड़े प्लांटो को होती है, उनकी कीमत किसानों को रुला रही हैं, जैसे गन्ने का उपयोग शुगर मिल वाले करते हैं, तो आज भी कौड़ियों के भाव गन्ने का समर्थन मूल्य रखा गया है। जबकि जलाऊ लकड़ी उससे महंगी बिक रही है। यही हाल सोयाबीन का है। सोयाबीन को सिर्फ प्लांट वाले ही खरीदते हैं। यह लोग सरकार से नीतियों में बदलाव कर किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं देते हैं। जबकि दूसरे खाद्यान्न में ऐसा नहीं होता है। श्री पटेल ने जिले के किसानों के हितों की चिंता करने वाले जनप्रतिनिधियों से भी अपील की है कि सभी किसानों को उनका हक दिलाने में सहयोग करें।