प्रमोद पगारे इटारसी।
तिलक सिंदूर का निर्माण 10वीं और 11वीं शताब्दी के मध्य माना गया है। यहां हर साल महाशिवरात्रि पर मेला लगता है इसमें हजारों आदिवासी और श्रद्धालु आते हैं। इसे पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। वर्तमान में इटारसी एसडीएम के मार्गदर्शन में जनपद पंचायत केसला एवं ग्राम पंचायत तालपुरा की देखरेख में 3 दिवसीय मेला लगता है। जिला प्रशासन द्वारा सभी जरूरी सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
विश्व के सभी शिवलिंगों में यह स्थान ऐसा है जहां शिवलिंग पर जल, दूध, बिल पत्र के साथ ही सिंदूर चढ़ाया जाता है। इसीलिए यह शिवालय बन गया ‘तिलक सिंदूर’। जिले के इटारसी से महज 18 किलोमीटर दूर स्थित सतपुड़ा के पहाड़ों में एक रहस्यमयी गुफा के भीतर विराजमान है यह अति प्राचीन शिवलिंग। मान्यता है कि यहां शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं। यह प्राचीन काल से आदिवासियों के राजा-महाराजा का भी पूजन स्थल बना हुआ है। यहां पर 5 दिवसीय यज्ञ आचार्य पं. विद्याधर शर्मा द्वारा किया जा रहा है। तीखड़ गांव के रामकृष्ण पटेल बम-बम महाराज सेवा समिति की ओर से लगे हुए हैं। बम-बम महाराज की समाधि पर श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं पूर्व सांसद एवं राज्य के पूर्व लोक निर्माण मंत्री स्व. सरताज सिंह के विशेष प्रयासों से जमानी से तिलक सिंदूर तक सड़क बनी और तिलक सिंदूर का व्यापक विकास किया गया। यहां धर्मशाला, बाग-बगीचे, मेला-मैदान, सत्संग भवन का निर्माण किया गया। भट्टी के राजेश वर्मा उर्फ मुन्ना ने अपने सहयोगियों के साथ कई वर्षों विकास में जो योगदान दिया उसे भुलाया नहीं जा सकता। इटारसी एसडीएम टी प्रतीक राव के नेतृत्व में महाशिवरात्रि के तिलक सिंदूर मेला के लिए अधिकारी और कर्मचारियों की रात दिन ड्यूटी लगाई गई है। आने वाले श्रद्धालुओं को तकलीफ ना हो इसका विशेष ध्यान रखा गया है। लाल महाराज के आश्रम में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।
एक रहस्यमय सुरंग भी
माना जाता है कि जब भस्मासुर भगवान शंकर को मारने के लिए पीछे पड़ गया था, तो उससे पीछा छुड़ाने के लिए भगवान ने सतपुड़ा की इन्हीं पहाड़ियों में शरण ली थी। यहां कई दिनों तक छुपने के बाद उन्होंने पचमढ़ी जाने के लिए एक सुरंग का निर्माण किया था। यहीं से वे पचमढ़ी के जटाशंकर जाकर छुपे थे। मान्यता के अनुसार आज भी यह सुरंग मौजूद है, जिससे भोलेशंकर जटाशंकर गए थे। और वहां काफी समय व्यतीत किया था। इसलिए शिवजी का दूसरा घर भी जटाशंकर धाम कहा जाता है।
अनोखे शिवालयः कैलाश पर्वत पर है शिवजी का घर, इस राज्य में है दूसरा घर
यहां जल पश्चिम दिशा की ओर बहता है। तपस्वी ब्रह्मलीन कलिकानंद बताते थे कि सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में यह स्थित है। यह ओंकारेश्वर शिवालय के समकालीन शिवलिंग है। यहां की जलहरी चतुष्कोणीय है। सामान्यतः जलहरी त्रिकोणीय होती है। ओंकारेश्वर महादेव के समान ही यहां का जल पश्चिम दिशा की ओर बहता है, जबकि अन्य सभी शिवालयों में जल उत्तर की ओर प्रवाहित होता रहता है। प्राचीन ग्रंथों में भी भारतीय उपमहाद्वीप के इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जिसमें इस स्थान को अनोखा बताया गया है।
इटारसी से 18 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम जमानी में यह स्थान खटामा के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। उत्तरमुखी शिवालय सतपुड़ा के पहाड़ों में है। इस क्षेत्र में सागौन, साल, महुआ, खैर आदि के पेड़ अधिक हैं। यहां छोटी धार वाली नदीं हंसगंगा नदी बहती है।
पहले तिलक सिंदूर मकड़ाई राज में था
यह स्थान पहले मकडाई के शाह परिवार की रियासत का हिस्सा था। यहां पूजन के लिए पहले शाह परिवार द्वारा ही भुमका नियुक्त किया जाता था। यहां 1925 से मेला लगाने की शुरुआत जमानी के मालगुजार की ओर से की गई थी। सन 1970 में यह स्थान को जनपद पंचायत केसला को हस्तांतरित किया गया। यहां का गुफा मंदिर अतिप्राचीन हैं, वहीं 1971 में पार्वती महल का निर्माण हुआ।
कई सिद्ध पुरुषों की तपस्थली
यह बमबम बाबा जैसे कई सिद्ध पुरूषों की तपोस्थली भी रही है। गणेश जी ने जब सिंदूर नामक राक्षस का वध किया तो उसके सिंदूरी खून से शिवजी का अभिषेक यहीं पर किया गया था। यहां नंदी के ऊपर भगवान शंकर की ऐसी मूर्ति है जो देश में दूसरी नहीं है। तिलक सिंदूर की महिमा अपरंपार है। यह दुनिया का इकलौता शिव मंदिर है जहां शिवलिंग को सिंदूर चढ़ाया जाता है यहां आने वाले हर व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है।