हृदयभूमि विचार
बात ज्यादा पुरानी नहीं जहां आतंकवादी को फांसी से बचाने रात में एक लाबी कोर्ट खुलवाने चली गई हो,और एक अन्य को सजा मिलने पर कुछ लोग दीदे फाड़कर रोए हों ऐसे में वहां कुछ और भी नया हो जाए शर्म की कोई बात नहीं। – जहां मानवाधिकारों को मटियामेट करने वाले आतंकवादियों को बचाने के लिए मानवाधिकार की दुहाई देने वाले लाइन लगाकर खड़े हों वहां कुछ भी हो सकता है।
– जहां अपराधियों को सजा देने के मामले में उसके कर्म नहीं धर्म को मुद्दा बनाने की कोशिशें हों वहां पीड़ितों को न्याय दिलाने की बात करने वाले मुट्ठीभर लोग सामने आएं, वहां नियमों और व्यवस्था की रखवाली कौन करेगा।
– जहां एनकाउंटर कर बलात्कारी को सजा देने वाले अफसर बर्खास्त कर सजा पाते हों, वहां कानून का डंडा किसके हवाले किया जाए। ऐसे अनेक सवाल आज जनमानस में गूंज रहे हैं। यहां हम आपको बता दें कि इस सवालों का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं। यह सवाल नैतिकता के अवमूल्यन का है।