हे यात्री वीर : फलसफा प्यार का तुम क्या जानों …
अमेठी में जगह नहीं बची, और वायनाड में कबाड़ा करने के मूड में कम्युनिस्ट
प्रदीप शर्मा संपादक
देश के बालीवुड की पुरानी फिल्मों का एक नगमा याद आ रहा है – फलसफा प्यार का तुम क्या जानो, तुमने कभी प्यार न किया। गीत की ये पंक्तियाँ शायद वर्तमान राजनीतिक हालातों पर जरूर फिट बैठती हैं।
– तो चर्चा करते हैं हम एक कथित युवा नेता की जो किसी महान राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ की सलाह पर कन्याकुमारी से कश्मीर तक कुछ पदयात्रा करने निकल पड़े। फिर इसमें हिंदू या सनातन का फंडा न आ जाए तो माननीय ने मणीपुर और प. बंगाल तरफ पूर्व से होकर पश्चिम की भी यात्रा पूरी कर ली।
इस यादगार यात्रा से उम्मीदें तो थी कि यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पदयात्रा या बाद में निकली महान समाजवादी नेता चंद्रशेखर की यात्रा की तरह होगी। चंद्रशेखर की इस आधी-अधूरी यात्रा ने कुछ कमाल किया। क्योंकि वे एक चिंतक और विचारक भी थे।
– यहां बात करें नई यात्रा की तो इसमें चिंतन की कहीं कोई गुंजाइश नजर नहीं आई। सिवाय कुछ बच्चों और महिलाओं से गले मिलने के। एक जगह तो बहन को स्नेहवश किसने का किस्सा भी यादगार बन गया।
– यात्रा का कुल फलसफा यह निकला कि प.बंगाल से फोकट में रवाना होकर असम और बिहार, उत्तर प्रदेश में मुंह की खाई। रहे सहे मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी भूकंप के कुछ झटके लगे, सो अलग।
– सो हमें इस पूरी यात्रा पर बस वही नगमा याद आता है : “फलसफा प्यार का क्या तुम जानों, तुमने कभी प्यार न किया।”
क्योंकि अब मैन चुनाव सामने आ गए हैं।