प्रदीप शर्मा संपादक हृदयभू
मेहरबानी कर उस वर्दी का मान रखिए जिसे पहनकर हमारे सैकड़ों सुरक्षा जवान और पुलिस का अमला जन-सुरक्षा में दिन-रात खटता रहता है। उन्हें न तो साप्ताहिक अवकाश की सुविधा होती है और न ही कोई “ई-एल” या “सी-एल” जैसी कोई छुट्टी समय पर मिल पाती है।
क्या है माजरा –
यहां हम चर्चा कर रहे हैं उन फिल्म निर्माताओं और छोटे पर्दे पर विज्ञापन दिखाने वाली कंपनियों के उन वीडियो शाॅट्स की जिसमें वर्दी पहनकर कोई भी कलाकार ऐसी-वैसी प्रस्तुति देता है, जिससे पुलिस की वर्दी का ही नहीं बल्कि उन जवानों की सेवा और भावनाओं का मजाक बन जाता है।
इन दिनों “टीव्ही” कुछ चैनलों में ब्रेकिंग टाइम दौरान एक विज्ञापन का प्रसारण खूब हो रहा है। इसमें बाॅलिवुड के मशहूर कलाकार नवाजुद्दीन लोगों को एक जुआ-सट्टा का काम करने वाली कंपनी से जुड़ने की बात करते हैं। हम यह नहीं कहते कि वे ऐसा न करें, यह उनका पैसा है। मगर जुए-सट्टे जैसी अनेक सामाजिक बुराई के खिलाफ अभियान चलाकर दिन-रात कार्रवाई करने वाली पुलिस की वर्दी का इस्तेमाल कदापि न करें।
फिल्मों में भी उड़ता है मजाक –
अक्सर देखने में आया है कि हमारे मनोरंजन के लिए बनाई गई कुछ फिल्मों में यदि हीरो पुलिस आफिसर है तो ठीक है। मगर यदि कोई साईड कलाकार इसके रोल में हो तो उसका मजाक भी बनाते हैं। ऐसा करके फिल्म निर्माता पूरे पुलिस सिस्टम का मजाक उड़ाते हैं।
उन्हें इस बात की कोई फिक्र नहीं कि 26/11 को मुंबई में ताज होटल पर हुए आतंकी हमले दौरान लोगों को बचाने और आतंकियों से जूझते हुए खून से लथपथ यही वर्दीधारी जवान शहीद हुए थे।
हमारा सुझाव है कि यदि उनकी प्रस्तुति में ऐसा कुछ दिखाना आवश्यक है तो वे मिलते-जुलते लिबास पहनाएं, न कि वर्दी पहनाकर उसका मजाक उड़ाएं। याद रखें यह वो पोशाक है जिसे पहनकर ये जवान देशसेवा और जनसेवा के पावन कर्त्तव्य हेतु अपने घर से निकलता है अनिश्चित काल के लिए। वह कब सही-सलामत घर लौटेगा यह किसी को नहीं पता।
क्या करे सरकार –
केंद्र सरकार को भी चाहिए कि वह ऐसा कानून बनाए जिसमें मनोरंजन जगत से जुड़ी फिल्म बनाने और विज्ञापन के वीडियो बनाने वाली कंपनियां वर्दी का मान न घटाएं। क्योंकि इस वर्दी को पहनने का हक सिर्फ उन्हें है जो देश भक्ति और जन सेवा का व्रत लेकर चलते हैं, न कि लोगों का मनोरंजन करने आते हैं।