प्रदीप शर्मा संपादक
मनोविज्ञान के विशेषज्ञ मानते हैं कि हाव-भाव और बाॅडी लैंग्वेज से किसी भी व्यक्ति की मनोदशा का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि इस सिद्धांत को मान लिया जाए तो आगामी 100 दिनों के भीतर होने जा रहे 18 वीं लोकसभा के चुनाव पूर्व देश में अनेक विपक्षी दलों ने अपनी हार मान ली है।
हाल ही स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देकर कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी द्वारा राज्यसभा के लिए नामांकन जमा कर उत्तर प्रदेश से पलायन सहित अन्य दलीय नेताओं के मिजाज से पता चलता है कि वे पहले ही हार मान चुके हैं।
बीते सप्ताह दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने भी कहा कि भाजपा चाहे 2024 में आ जाए, मगर 2029 में आम आदमी पार्टी उसे शिकस्त देने को तैयार है। इन नेताओं की परोक्ष-अपरोक्ष रूप से ऐसी स्वीकारोक्ति बताती है कि 18 वीं लोकसभा के चुनाव में इनकी दाल नहीं गलने वाली।
एक पखवाड़े पूर्व सीट आवंटन से नाराजी कहें या अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास से उपजे आस्था का सैलाब से घबराए एक राज्य में 8 बार सीएम रह चुके पलटुराम ने भाजपा का दामन फिर से थाम लिया। इधर मध्यप्रदेश में भी एक बड़े नेता अपने बेटे के राजनीतिक भविष्य की खातिर केसरिया दल के नेताओं से मिलने की कवायद करते रहे।
अभी आंध्रप्रदेश के भी एक बड़े नेता अपने दल-बल के साथ कमल के फूल से गठबंधन करने की जुगाड़ लगा रहे हैं। बस सौदा पटते ही ऐसे अनेक विपक्षी नेता चुनावी शंखनाद होते-होते केसरिया बाना पहने नजर आने लगें तो कोई अचरज की बात नहीं। शायद 2024 में होने वाला लोकसभा का यह आमचुनाव ऐसा पहला चुनाव होगा जिसमें विपक्ष को पहले ही अपनी हार दिखाई दे रही है।
दुनिया के अनेक देश भी मान रहे आएगा तो मोदी ही:
दुनिया के तमाम देश भी मोदी की जीत तय मानकर आगामी जुलाई अगस्त में उन्हें अपने देश आने का न्यौता दे रहे हैं। जबकि चुनाव के पूर ऐसे किसी भी देश के नेताओं को न्यौते देने से परहेज किया जाता है।