प्रदीप शर्मा संपादक।
हमारे मुस्कुराने की वजह केवल आप हैं/
और एक मैं हूं कि अब तक मुझे इसका पता नहीं चला/
-इधर एक मैं हूं
और एक आप हैं/
जो एक-दूसरे को देख
मुस्कुरा देते हैं/
वरना आजकल के इस जमाने में
खुशियां बड़ी मुश्किल से मिलती हैं।
-तो आओ क्यों न हम
कभी-कभार यूं ही मिल जाया करें/
हंसने और मुस्कुराने का एक बहाना मिल जाएगा।
-वह इसलिए भी कि
ये धूप थी घनी और कड़ी भी बहुत/
जब तुम मेरे साथ चले तो
लगा सर्द हवा का झोंका चला/
तुम जब-जब संग चले तो ऐसा लगा
कोई अपना सा मिला/
जब फिर न आए तुम कभी/
और कोई आहट सी भी न मिली/
मुझको लगा कि
शायद मुझे ही
कोई धोखा हुआ।