March 15, 2025 |
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ये जिंदगी केवल एक ख्वाब है, जो दोबारा आती नहीं

अवकाश के दिन हो कोमल विचारों का सिलसिला

Hriday Bhoomi 24

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प्रदीप शर्मा हरदा।

जिंदगी एक ख्वाब थी/

और जिंदगानी भी/

कोई तो मेरे साथ चलो!/

-गर हम चल पड़े तो

निकल पड़ेगी दुनिया घरों से/

मगर अफसोस कि

कोई मेरे साथ नहीं/

-अब आती नहीं है

कभी, कहीं, किसी की आवाज

छोड़िए वो अपना तो नहीं/

-कल तुम थे जहां

और आज हूं मैं वहां/

मगर फिर भी

किसी की आवाज आती तो नहीं!

-चलिए हम बैठकर

यहां गम मिटाएं अकेले,

यहां तो मौत भी आती नहीं।


Hriday Bhoomi 24

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