प्रदीप शर्मा संपादक हृदयभूमि
जहां-जहां पैर पड़े संतन के तहां-तहां हो उद्धार। यह पंक्तियां कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर पूरी तरह सटीक लगती है। हिंदी भाषी बेल्ट में भारत जोड़ो यात्रा के तहत इनके पैर जहां-जहां भी पड़े वहां-वहां दुश्मनों का उद्धार हो गया। कुछ यही हाल, अभी-अभी शुरू हुई उत्तर-पूर्व भारत की न्याय यात्रा में नजर आता है।
साल 1914 में हुए देश के लोकसभा चुनाव पूर्व तक अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी के नाम का डंका पार्टी की पूर्व विरासत के साथ भारतवर्ष में खूब बजता रहा है। पार्टी के इस होनहार नेता का जलवा इतना निराला था कि सदन में अपने दल के नेता और देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लाए एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को सबके सामने बकवास बताते हुए फाड़कर फेंक दिया था। यह उनके जलवे का शायद सबसे खास मौका था, फिर तो शायद उन्हें निकट समय में आई मोदी सुनामी के दौर में राहुल बाबा को पूरे देश की सड़क नापनी पड़ी मगर कहीं मील का वह पत्थर नहीं मिला जहां बैठकर दो वक्त सुकून की सांस ले सकें।

पार्टी के थिंकटैंक की सलाह पर उन्होंने दक्षिण भारत में कन्याकुमारी से लेकर श्रीनगर तक भारत जोड़ो यात्रा निकालकर अपने नेतृत्व के कई जोहर दिखाए इसमें कर्नाटक और हैदराबाद में मिली पार्टी की जीत का श्रेय स्थानीय नेतृत्व के खाते में गया, मगर आलाकमान ने इसे भारत जोड़ो का परिणाम बताया। इसके बाद जैसे ही यात्रा महाराष्ट्र से होकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ होकर राजस्थान व उत्तरप्रदेश से आगे पहुंची इसकी सफलताओं की कहानी संबंधी सारी कलई प्याज के पत्तों की तरह खुलती गई। अलबत्ता इस दौरान यह अवश्य हुआ कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से राहुल बाबा की लोकसभा सदस्यता फिर से बहाल हो गई और वे फिर से ससम्मान सदन में लौट आए।
अब हाल ही में उत्तर-पूर्व भारत से शुरू की गई न्याय यात्रा में भी कई लोकसभा सीटों की सड़क नापने के अभियान में पार्टी ने उम्मीदें जताई थीं कि मणिपुर दंगों को लेकर वह लोकसभा चुनाव की हवा फिर से गर्म कर सकेंगे, किंतु इस मुद्दे की हवा तो हिंदी भाषी बेल्ट में पहले ही निकल चुकी थी। हां यात्रा शुरू होने के प्रारंभिक दौर में “इंडि- एलाइंस” का भी यात्रा के मध्यकाल तक आते-आते बंटाढार हो गया। रही-सही कसर अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास ने निकाल दी। यदि पार्टी के नेताओं को इसमें जाने की अनुमति न मिलते तो कोई भीतरी बवाल होने की आशंका थी। यहां तक भी ठीक था, मगर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की नेत्री ममता बनर्जी द्वारा आंख दिखाने के बाद यात्रा को कोरा-कोरा रवाना होना पड़ा जिसका टायर असम में प्रवेश करते ही हेमंत विशेश्वर सरमा के सामने पंचर हो गया।
अब उत्तर प्रदेश में इसका क्या हाल होगा इसके संकेत समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहले ही दे दिए हैं, जबकि योगी सरकार पहले ही डंडा भांजकर बैठी है। इधर महाराष्ट्र में उनके मित्र दल शरद यादव की राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना सीट बंटवारे में अंगूठा दिखाने को तैयार है।
इससे लगता है कि संतों के जाने से वह सारी भूमि पहले ही पवित्र होने लगी है। अब राउल बाबा की यात्रा का पटाक्षेप होने पर किसी का बंटाढार होने की खबरें और आना शेष है।
तब तक के लिए नमस्कार !🌹
(आलेख की सभी फोटो आभार सहित)