प्रदीप शर्मा संपादक
गत चार दशक से टिमरनी सीट पर लगातार चुनाव जीत रही भाजपा को ऐसी क्या नजर लगी कि प्रदेश में केसरिया लहर के बीच मामूली अंतर से यह सीट गंवा बैठी। विधानसभा चुनाव 2023 में लगभग त्रिकोणीय मुकाबला मानी जा इस सीट पर हरदा और मसनगांव से मैनेज करने की कला काम नहीं आई। या शायद टीम मैनेजर अपनी जीत पक्की मानकर मुकाबले को हल्के अंदाज में लेने लगे थे। इस कारण न तो ढंग से मीडिया मैनेजमेंट हुआ और न ही वनांचल सहित सिराली बेल्ट पर पकड़ बनाने में रुचि ले पाए। हैरानी की बात यह कि हरदा से कांग्रेस के पक्ष में ‘गुजरी’ हवा को टिमरनी में नहीं रोक पाए। इस क्षेत्र में भाजपा को हर बार मिलने वाले पूरे गुर्जर भी मिले होंगे कहना मुश्किल है। सो टिमरनी की हार के कारणों में मसनगांव से चले आत्मसंतोषी मैनेजमेंट की फिल्म जब सामने आई तो दर्शक कम होने से यह फ्लाॅप-शो बन गई।