गजेंद्र सिंह राजपूत नर्मदापुरम।
सख्त मिजाज वाले मुख्यमंत्री मोहन यादव का आदेश ही बेअसर हो जाए तो गरीबों के हित का कौन रखवाला?
कुछ ऐसा ही हाल प्रदेश के नर्मदापुरम जिले का है जहां स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही से गांवों में झोलाछाप डाक्टरों का शिकंजा खत्म नहीं हुआ। यहां आलाअधिकारी झोलाछाप डॉक्टरों पर इस कदर मेहरबान हैं कि जिले में खुलेआम अवैध क्लीनिक और अस्पताल धड़ल्ले से चल रहे हैं। जबकि मोहन सरकार ने सभी कलेक्टर और सीएमएचओ को पत्र लिखकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। यहां नर्मदापुरम जिले के केसला ब्लाक स्थित ग्राम सेमरी में झोलाछाप डॉक्टर बंगाली श्रीकांत काफी लंबे समय से अपना क्लीनिक खोलकर जनस्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ये स्वयं को डॉक्टर बताकर गंभीर बीमारियों का इलाज करने का दावा कर ग्रामीण जनता से मोटी फीस वसूल रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि जब पहले डॉक्टर श्रीकांत बंगाली ने ग्राम सेमरी में कदम रखे थे तब उन्होंने एक साइकिल से आकर यहां अपना डेरा जमाया। इज वह लाखों में खेल रहे हैं। मगर आज तक
स्वास्थ्य अधिकारी एवं प्रशासन द्वारा ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
*क्या है आदेश-*
मध्य प्रदेश की डॉ मोहन यादव सरकार ने सभी 55 जिलों के कलेक्टरों और मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को आदेश दिया है कि वह अपने क्षेत्र में झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ अभियान शुरू करें। ऐसे सभी तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए जिनके पास कोई डिग्री डिप्लोमा नहीं है लेकिन फिर भी वह स्वयं को डॉक्टर बताते हैं।
– संचालनालय लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मध्य प्रदेश से समस्त कलेक्टर एवं समस्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के नाम जारी परिपत्र क्रमांक 248 दिनांक 15 जुलाई 2024 में लिखा है कि, मध्य प्रदेश में कई अपात्र व्यक्तियों द्वारा फर्जी मेडिकल डिग्री अथवा सर्टिफिकेट का प्रयोग करके अमानक चिकित्सा पद्धतियों के उपयोग से मरीज का इलाज किया जा रहा है। बहुत सारे ऐसे व्यक्ति एलोपैथिक पद्धति से मरीजों का इलाज कर रहे हैं जिन्होंने मेडिकल की कोई डिग्री, डिप्लोमा अथवा सर्टिफिकेट प्राप्त नहीं किया है और जो विधि के अनुसार एलोपैथिक पद्धति से इलाज करने के लिए अधिकृत नहीं है।
अपने नाम के साथ डॉक्टर शब्द कौन लिख सकता है
निर्देशित किया जाता है कि ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की जाए।
यह भी उल्लेखनीय है कि चिकित्सा शिक्षा संस्था (नियंत्रण) अधिनियम, 1973 यथा संशोधित अधिनियम, 1975 एवं संशोधन अधिनियम, 2006 की धारा 7-ग अनुसार ” ‘डॉक्टर’ अभिधान का उस व्यक्ति के नाम के साथ उपयोग किया जा सकेगा, जो कोई मान्यता प्राप्त चिकित्सकीय अर्हता धारित करता हो और जो तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा स्थापित किसी बोर्ड या परिषद् या किसी अन्य संस्था में चिकित्सा व्यवसायी के रूप में रजिस्ट्रीकृत है तथा अन्य कोई व्यक्ति स्वयं को चिकित्सा व्यवसायी के रूप में अभिव्यक्त करने के लिए ‘डॉक्टर’ अभिधान का उपयोग नहीं करेगा”।
उपरोक्त वर्णित अधिनियम की धारा 7-ग के उल्लंघन में कारावास की कालावधि 3 वर्ष तक व जुर्माना पचास हजार रुपये तक का प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि धारा 7-ग का संबंध गैर मान्यता प्राप्त चिकित्सकों से है।म.प्र उपचर्यागृह तथा रूजोपचार संबंधी स्थापनाएं (रजिस्ट्रीकरण तथा अनुज्ञापन) अधिनियम, 1973 की धारा 3 का उल्लघंन, न्यायालय में दोषसिद्धी (Conviction) होने पर दण्डनीय है जिसके प्रावधान धारा 8 में वर्णित हैं।
निजी चिकित्सकीय स्थापनाओं के पंजीयन एवं अनुज्ञापनकर्ता अधिकारी जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी हैं। अतएव गैर मान्यता प्राप्त संस्थाओं, अपात्र व्यक्तियों द्वारा संचालित चिकित्सकीय स्थापनाओं का संचालन पाए जाने पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा उचित विधिक कार्यवाही हेतु संबंधित जिला अभियोजन अधिकारी (District Prosecution Officer) को प्रकरण के समस्त तथ्य तत्काल उपलब्ध कराए जाए ताकि उचित वैधानिक कार्यवाही सुनिश्चित हो सके।
ब्यूरो चीफ गजेंद्र सिंह राजपूत।
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