प्रदीप शर्मा संपादक –
गत 9 अक्टूबर 2024 की शाम देश के अनमोल रतन का अलविदा कहकर चला जाना देशवासियों के लिए सर्वाधिक दुखद पहलू है। वे न तो कोई नेता थे और न ही कोई दिखावट वाले शो-पीस, मगर वे एक ऐसी शख्सियत के मालिक अवश्य थे, जिसे धारण करने का अधिकार शायद कम ही लोगों को मिलता है।
-आज देश में आर्थिक क्रांति लाने वाले उद्योगपतियों की चाहे लंबी कतार लग गई हो, मगर रतन कभी-कभार ही आते हैं। याद आता है वह दौर जब देश की अर्थव्यवस्था लगभग तबाह थी। इस दौरान टाटा की कमान संभालने वाले रतन ने न केवल औद्योगिक गति प्रदान कर लाखों लोगों को रोजगार दिया बल्कि अपनी आय का 66% हिस्सा आमजन के हितार्थ समाजसेवा के लिए रखा।
-ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, अभी कोरोना काल में जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गई थी। दुनिया के कई देशों के पास इस संकट से निपटने के लिए एक धेला नहीं था। तब भारत सरकार को करोड़ों रुपए की मदद करने के साथ रतन ने अपने सारे हास्पिटल कोरोना मरीजों के निशुल्क उपचार के लिए खोल दिए।
-ऐसे थे हमारे रतन टाटा। उनके ऐसे अनेक किस्से-कहानी शायद अंतिम क्रिया-कर्म के साथ दफन या खाक हो जाएंगे। मगर यादों की कब्र में हमेशा वे सदैव ही जिंदा मिलेंगे।
अलविदा रतन ….🙏