मौत तू एक कविता है, उस कविता का मुझसे मिलने का वादा है…
आज के जमाने के ग़ालिब गुलज़ार साहब की रचनाएं अमर हैं
।
आज के संदर्भ में शायद ‘गुलज़ार’ साहब को ‘ग़ालिब’ कहें तो गलत नहीं होगा। ये एक जिंदा हस्ती हैं। बड़े सम्मान के साथ मैं उनकी रचनाओं और गीतों को याद करता हूं।
आज के संदर्भ में शायद ‘गुलज़ार’ साहब को ‘ग़ालिब’ कहें तो गलत नहीं होगा। ये एक जिंदा हस्ती हैं। बड़े सम्मान के साथ मैं उनकी रचनाओं और गीतों को याद करता हूं।
*मौत तू एक कविता है। और एक कविता का मुझसे मिलने का वादा है। देर शाम जब फलक तक डूब न जाए सूरज उसका मुझसे मिलने का वादा है। वो आएगी मुझसे मिलने जरूर यकीन है मुझे क्योंकि यह मेरा भी उससे एक वादा है।*