May 13, 2025 |
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हिंदी बेल्ट में नीतीश पर दाव कितना फायदेमंद

इंडी एलायंस को बड़ा नुकसान होने का आकलन

Hriday Bhoomi 24

हृदयभूमि विश्लेषण –

18वीं लोकसभा 2024 के चुनाव होने में अभी एक-दो माह की देरी है, मगर भाजपा के कुशल रणनीतिकार अमित शाह इसे लेकर काफी गंभीर हैं। चुनाव के ढाई महीने पहले ही उनकी ओर से एक ऐसा दाव चल दिया गया है जिसके दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलेंगे।

जानकार कहते हैं कि जब शाह कहते थे कि अब नीतिश से कोई गठबंधन नहीं होगा, तब अचानक ऐसा क्या हुआ कि पार्टी ने एकाएक जदयू पर दाव चलकर विपक्ष के होश उड़ा दिए हैं। तो इसका कारण सिर्फ एक है – और वह है इस चुनाव में भाजपा गठबंधन को 400+ के पार पहुंचाना। हालांकि कितना बड़ा लक्ष्य पाती है, मगर यह तय है कि वह अन्य गैरभाषी राज्यों को साधने के फेर में अपना हिंदी भाषी बेल्ट किसी भी कीमत पर नहीं गंवाना चाहती।

सो नितीश कुमार पर चला गया यह दाव हर मान से सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। उत्तर पूर्व भारत में विपक्ष से जिन बड़े नेताओं को याद किया जाता है उनमें वह सबसे अहम शख्सियत हैं। यह नीतिश कुमार ही हैं कि उनके कार्यकाल में राजद के बाहुबलियों पर नकेल कसी गई। बिहार में लालूप्रसाद यादव भी एक पाॅवर हैं किंतु वहां उनके साथ और कोई विशेष शक्तियां नहीं हैं जो पूरे राज्य पर कंट्रोल करने में उनका साथ दे सकें। कांग्रेस का इस राज्य में यूं भी कोई वजूद शेष नहीं बचा। जबकि जीतनराम मांझी सहित चिराग पासवान अभी भाजपा के साथ हैं। ऐसी स्थिति में यदि पार्टी ने इनके बीच उचित तालमेल बैठा लिया तो बिहार की सभी लोकसभा सीटों पर कब्जा करने में बड़ी मुश्किल नहीं होगी। 

अयोध्या में राममंदिर बनने के मामले से नितीश को अपने परंपरागत वोटबैंक के सामने जरूर कुछ मुश्किलें हो सकती हैं। मगर वे इतने चतुर सुजान हैं कि इन सबका हल निकाल पाएंगे। इस बार उनके साथ भाजपा के तेज-तर्रार नेता सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा होने से सरकार पर बीजेपी की पकड़ मजबूत रहेगी। 

जानकारों का मानना है कि बिहार को साधकर पार्टी ने हिंदी बेल्ट में इंडी-एलायंस मात दे दी है। उत्तर पूर्व भारत के पश्चिम बंगाल में भी अब भाजपा दूसरी बड़ी पाॅवर बनकर उभर रही है। ममता की नीतियों के कारण हिंदू मतों को जो ध्रुवीकरण हो रहा है उससे निकट समय में यहां काफी लाभ केसरिया दल को मिलेगा। जबकि असम में हेमंत विस्वा सरमा के होने के बाद उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ योगी के सामने कांग्रेस की दाल नहीं गलने वाली। यहां अखिलेश यादव की सपा यदि कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई तो लगता है कि बिहार की बाजी से भाजपा ने एक साथ कई लाभ उठाने का जतन कर लिया है। क्योंकि राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि में विपक्ष के नामलेवा भी मुश्किल से मिलेंगे।


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