April 24, 2025 |
Search
Close this search box.

वतन पर मिटने वालों का नामोनिशां भी बाकी नहीं

आजाद भारतवर्ष में लोग नहीं जानते शहीदों के वंश के नामोनिशां

Hriday Bhoomi 24

खटाक खटाक दो बार दरवाजे पर आवाज हुई … देखो इतनी रात कौन आया है , मुखिया ने बीबी से कहा …
जब उसने दरवाजा खोला तो सफ़ेद साड़ी में लिपटी हुई एक कृशकाय औरत काँप रही थी … कुछ खाने को मिलेगा ? उन्होंने दरवाजा खोलने वाली औरत से मनुहार किया …
चल भाग बुढ़िया यहाँ से … कहकर उसने दरवाजा बन्द करना चाहा … लेकिन वो बुढ़िया पैरों में गिर पड़ी … और थोड़े से नमक की ही मनुहार करने लगी जिससे वो अपने पास रखा कोदों खा सके … लेकिन उसकी ना सुनी गयी और दरवाजा खटाक से बन्द हो गया …
वो बुढ़िया और कोई नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले में भाबरा के लाल व महान स्वतंत्रता संग्रामसेनानी अमर शहीद पंडित चन्द्रशेखर तिवारी “आज़ाद” की माँ जगरानी देवी थी …
आज़ाद के शहीद होने के बाद हमारे ही हिंदु समाज ने जगरानी देवी का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार कर दिया गया …
गुलामी के जूते चाटते चाटते अंधे हो चुके ग्रामीणों द्वारा एक शहीद की माँ को डकैत की माँ कहकर बुलाया जाता रहा …
दुःख की बात ये है कि ये चीज़ देश के “आज़ाद” होने के बाद भी 1949 तक जारी रही …
1949 में #आज़ाद के सबसे विश्वासपात्र सैनिक #सदाशिव ने जगरानी देवी को ढूंढ़ निकाला और अपने साथ झाँसी ले गए और अपने सेनापति की माँ को सगे बेटे से भी बढ़कर प्यार दिया और उनकी आस्थाओं के हिसाब उनको कंधे पर बिठाकर तीर्थयात्राएं कराई और उनको वो सारा सम्मान दिया जिसकी वो हक़दार थीं …
1931 में चंद्रशेखर आज़ाद के शहीद हो जाने पर जगरानी देवी पर मानों पहाड़ टूट पड़ा हो, जिसके मात्र 25 वर्षीय एकलौते बेटे ने मातृभूमि की सेवा के लिए अपनी जान दे दी हो उसके चरणों का पानी भी अमृत समझा जाना चाहिए लेकिन उनके साथ उसी वक़्त से सौतेला व्यवहार शुरू हो गया, आज़ाद के जाने के बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एशोसिएशन ख़त्म हो गयी, सदाशिव को भी कालेपानी की सजा सुना दी गयी और फिर जगरानी देवी के दुर्दिन दिन शुरू हो गए जो लगातार 18 वर्षों तक जारी रहे … वो जंगल से लकड़ी काटकर बेचतीं थीं और फिर बाजरा लाकर उसका घोल बनाकर पीतीं थीं किसी तरह उन्होंने अपने ज़िन्दगी के 18 वर्ष व्यतीत किये … सदाशिव के कालेपानी की सजा ख़त्म होने के बाद उन्होंने जगरानी देवी को ढूंढ़ा और अपने साथ ले गए …
जगरानी देवी के हृदय में अक्सर यह कसक रहती थी, कि जिस देश के लिए उनके बेटे ने अमर बलिदान दिया उसी देश ने उन्हें भुला दिया … और यही कसक लिए वो मार्च 1951 में इस संसार से विदा हो गयी …
23 जुलाई 1906 को इस माँ ने आज़ाद को जन्म दिया था, अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद को कोटिशः नमन!
शहीदों के चिताओं पर अब लगते नहीं मेले …
वतन पर मिटने वालों का निशां

अब कहाँ बाकी है।


साभार
Maria Lohia


Hriday Bhoomi 24

हमारी एंड्राइड न्यूज़ एप्प डाउनलोड करें

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Leave A Reply

Your email address will not be published.