प्रदीप शर्मा संपादक
लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत से दूर रखने में कामयाब इंडी गठबंधन की निगाहें इन दिनों सदन के अध्यक्ष चुनाव पर लगी हुई है। राजनीतिक विश्लेषक बूझ रहे हैं कि क्या है इस अंडे का फंडा। सबको पता है कि टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू, फिर जेडीयू नेता नीतिश कुमार को पीएम पद की दावत देने में नाकाम इंडी नेता, अब लोकसभाध्यक्ष को लेकर एनडीए के इन दो बड़े दलों पर डोरे डाल रहे हैं। जबकि इससे बेफिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अपनी रणनीति के अनुसार कार्य कर रही है। क्या है विपक्ष द्वारा यह न्यौता देने का राज और उनकी चालों से पीएम नरेंद्र मोदी क्यों बेफिक्र हैं।
सदन में अध्यक्ष की महत्ता –
दरअसल 2024 में बनी ‘हंग एसेंबली’ देखते हुए इंडी गठबंधन के नेता चाह रहे हैं कि किसी भी प्रकार एनडीए में फूट पड़ जाए तो चुनाव में उनका बिगड़ा हुआ खेल फिर बन जाए। मगर उनकी दाल गलती नजर नहीं आ रही है। ऐसी स्थिति में उनकी कोशिश है कि सदन में चुना जाने वाला अध्यक्ष उनकी मेहरबानी से आए। यदि ऐसा संभव हो सका तो विपक्ष सरकार को घेरने और संभावित दलबदल अथवा समर्थन के मामले में काफी सहूलियत हो जाएगी। ये सदन नहीं चलने देंगे और सरकार महती फैसले नहीं ले पाएगी।
घटक दलों की समस्या-
इधर चुनाव के समय जिस तरह नीतिश कुमार को इंडी गठबंधन में लूपलाईन पर लाने की कोशिशें हुई, उसके घाव नीतेश अभी भूले नहीं है। फिर बिहार में किस तरह उन्होंने राजद का साथ देकर उनके सामने मुश्किलें खड़ी की यह भी ज्यादा पुराना मामला नहीं है। इसी प्रकार आंध्रप्रदेश में भाजपा का साथ लेकर सत्ता में आए टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू भी नहीं चाहते कि वह केंद्र के साथ पंगा लेकर अपने राज्य का अहित करें। यही वजह है कि लाख कोशिश के बावज़ूद विपक्ष की दाल नहीं गल रही। इन स्थितियों को देखते हुए पीएम मोदी और भाजपा विपक्ष की चालों से बेफिक्र है।