भीर पड़ी है भक्तन की, टिकट दे दो प्यारी पार्टी
मध्यप्रदेश में दो ही दल प्रमुख, मगर टिकिट के लिए भगदड़
हरदा/भोपाल। राजनीति भी अजब खेल है, न विचार न विचारधारा, न कोई ध्वज, न कोई दल। बस जहां हम वहीं पर है दम। सिर्फ इतनी सी सोच और कुछ साथियों का समर्थन ही चाहिए। यह सब कुछ बीते कुछ दिनों से ज्यादा देखने को मिलने लगा है।
वो सिर्फ इसलिए कि सत्ता की खातिर वैचारिक लोगोंं वैचारिक लोगों को भी तोड़कर अपने साथ लाने की कवायद में उन्हें भुला दिया जिन्होंनेे वैचारिक लोगों को भी तोड़कर अपने साथ लाने की कवायद में उन्हें भुला दिया जिन्होंने उन्हीं सीटों पर कठिन समय में कड़ी लड़ाई लड़ी थी।
– इस प्रकार वर्षों से कार्य करते हुए जेल की सजा भुगतने वाले तपस्वी आज दरकिनार हैं। ऐसा ही कुछ बुखार दूसरी पार्टी यानी — में भी है। जहां बीते डेढ़-दो दशक से काम करने वाले लोग हैरान हैं कि नए-नए तिरंगा पहने लोग कैसे आगे की कतार में आने लगे।
– यह देखकर लग यह देखकर लग रहा है कि चुनाव में असली फैसला जनता करेगी जो चोलों को बदलने वाले इन लोगों को बखूबी पहचान चुकी है।