ऐसे निकली खुली डिबेट के गुब्बारे की हवा
पश्चिमी देशों की तर्ज पर चुनाव में डिबेट का सुझाव कितना उपयुक्त
प्रदीप शर्मा संपादक
लोकसभा चुनाव में पश्चिमी देशों की तर्ज पर खुले मंच पर डिबेट करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को बुलाने का आफर राहुल ने तो हाथोंहाथ लपक लिया किंतु भाजपा ने खारिज कर सिरे से डिबेट के गुब्बारे की हवा निकाल दी।
सुझाव देने वाली हस्तियां –
डिबेट का सुझाव देने वाले लोग कोई मामूली हस्ती नहीं बल्कि दो पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर, अजीत पी शाह और देश के प्रखर पत्रकारों में शुमार एन. राम साहब हैं। उनका मानना है कि देश में स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसी डिबेट का आयोजन खुले मंच पर किया जाना चाहिए। ताकि जनता अपने नेताओं के विचार और उनकी नीति जान सकें।
भारत एक बहुदलीय लोकतंत्र –
भारत वर्ष एक बहुदलीय व्यवस्था वाला संघात्मक लोकतंत्र है। जबकि डिबेट परंपरा वाले पश्चिमी मुल्क अध्यक्षीय व्यवस्था के साथ एकात्मक लोकतंत्र हैं। वहां दलों द्वारा सीधे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति प्रत्याशी के नाम का ऐलान कर उनके लिए वोट मांगे जाते हैं। इसलिए वहां इन प्रत्याशियों की सोच और नीतियों को जानने के लिए डिबेट एक अच्छी परंपरा हो सकती है। क्योंकि वहां इस बात की गारंटी है कि डिबेट में शामिल जिन दो नेताओं को हम सुनने जा रहे हैं, उनमें से किसी एक की प्रधानमंत्री अथवा अध्यक्ष बनने की गारंटी है।
अध्यक्षीय प्रणाली में उपयुक्त –
एक वर्ग का मानना है कि भारतीय संविधान की व्यवस्था देखते हुए हमारे देश में ऐसी डिबेट का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि हमारे देश का शासन अध्यक्षीय व्यवस्था न होने के साथ यह एक संसदीय लोकतंत्र है। यहां सदन के नेता का चुना बहुमत से किया जाता है। चुनाव में वोट भी नेता के नाम से नहीं दल के सिंबाल पर मांगे जाते हैं। जब सदन के नेता का चुनाव बाद में होना है, तब इसके पहले ही उन्हें नेता मानकर डिबेट कराना कितना उचित है। याद रहे अभी भाजपा के अलावा किसी अन्य दल के इतने प्रत्याशी मैदान में नहीं हैं जो चुनाव बाद सदन में स्वयं के बूते अपनी सरकार बनाने का दावा कर सके।
एलायंस भी साथ नहीं –
यहा बता दें कि राहुल जिस इंडी एलायंस की दुहाई दे रहे हैं उसने अब तक उन्हें या किसी अन्य को अपने पीएम नेता के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया है। इस एलायंस की विश्वसनीयता पर इसी से सवाल लग जाते हैं कि पश्चिम बंगाल में तो कांग्रेस के साथ कोई सीट शेयर नहीं की गई, वहीं पंजाब सहित अन्य राज्यों में इसकी घटक पार्टियां इसके खिलाफ चुनाव लड़कर उनका खेल बिगाड़ रहीं हैं।
डिबेट का मकसद ?
जब लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को छोड़कर किसी अन्य दल ने इतने प्रत्याशी भी खड़े नहीं किए जो चुनाव बाद अपने दम पर सदन में बहुमत लायक 272 सीटें भी ला सके। तब डिबेट में मोदी के सामने राहुल को आमंत्रित करना परोक्ष रूप से उन्हें पीएम पद का दावेदार बताने से अधिक कुछ नहीं है।
दूसरे सही दावेदार का पता लगाना जरूरी
ऐसी चुनावी डिबेट के लिए सबसे पहले आयोजकों पीएम पद के मुफीद दावेदार का पता लगाना होगा। अन्यथा खुले मंच पर बहस में ऐसे नेता को बुलाने का क्या औचित्य जिसकी अभी पीएम बनने की गारंटी नहीं।ठीक बात है कि भाजपा ने इस डिबेट को गंभीरता से न लेकर पहले ही खारिज कर दिया।