(फोटो साभार)
चिंतन : प्रदीप शर्मा संपादक
अक्सर उजाले की पूजा करने वाले भूल जाते हैं कि अंधेरे की कोख से ही इसका जन्म हुआ है। पत्थरों के टकराने से जो चिंगारी और अबुझ आग बनी, पानी की गति को देखा तो ऊर्जा का नया स्रोत मिला। यह सब क्या है, और क्या छिपा है इस प्रकृति में ढेर सारा रहस्य, सचमुच इसके खेल बड़े निराले हैं।
बहरहाल इस मानव जीवन में अंधकार और प्रकाश के बीच तुलना करना असंभव है। क्योंकि अंधेरा शास्वत है और प्रकाश एक घटना ! इस विराट ब्रह्मांड में हर जगह अंधेरा ही अंधेरा विद्यमान है। यदि कहीं उजाले की जरा सी भी किरण दिखे तो समझ लेना कोई नोवा सितारा फटकर प्रकाशमान हो गया है।
इसलिए उजाले की पूजा करने से पूर्व हम यह जान लें कि इसी अंधेरे की कोख से जन्मा है संसार और जन्मी है यह सारी सृष्टि।
इस मानव जीवन में भी गतिविधियों का यह चक्र निरंतर चलता रहता है। कभी सुख आता है, तो कभी दुख जाता है। यह कभी भी किसी के रोके न रुका है। दिन का ढलना है, रात का आना है, और सुबह का भी होना है। यह क्रम निरंतर आनी-जानी है। फिर किसके रोके रुका है ये सबेरा …
इसलिए परम जगत के नियमों को शिरोधार्य कर धैर्यपूर्वक आगे बढ़ते रहें, यह डगर जरूर कठिन है, मगर बस खत्म होने वाली है।