नईदिल्ली। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया द्वारा चुनावी बॉन्ड की सार्वजनिक की गई सूची में स्टेट बैंक आफ इंडिया द्वारा बॉन्ड का नंबर न बताने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बैंक ने चुनावी बॉन्ड के नंबर (अल्फा न्यूमेरिकल नंबर यानी शब्द और अंकों से मिलकर बना विशिष्ट नंबर) क्यों नहीं बताया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट ने चुनाव बॉन्ड से संबंधित सारी सूचना देने का आदेश दिया था।
तस्वीर साफ होगी
– यह ज्ञात हो कि केंद्र सरकार चुनावी बॉन्ड योजना में बैंक द्वारा गोपनीयता बरतने की नीति के चलत प्रत्येक बॉन्ड को विशिष्ट नंबर दिया जाता है, ताकि दानदाता कंपनी और दान लेने वाले दल का नाम गोपनीय रहे। इसके चलते चुनावी बॉन्ड खरीदने और राजनीतिक दलों द्वारा इसे भुनाने की सूचना अलग-अलग एकत्र की जाती थीं। बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय के आदेश बाद यह माना जा रहा है विशिष्ट नंबरों से यह जाना जा सकता है कि किस कारपोरेट हाउस ने किस दल को कितना चंदा दिया।
– अभी बैंक से मिली जो जानकारी केंद्रीय चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर डाली है उसमें बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों या लोगों और जिन दलों ने ये बॉन्ड भुनाए हैं उसकी दोनों सूची अलग-अलग है। इससे चुनावी बांड की स्थिति साफ नहीं हो पाई है।
– विशेषज्ञों द्वारा इनको मिलाने की कोई कड़ी नजर भी नहीं आती। इससे यह तो जाना जा सकता है कि किसने और कितने बॉन्ड खरीदे हैं, यह भी कि इन बांड से किस राजनैतिक दल को इससे कितना चंदा मिला। लेकिन फिर भी स्पष्ट नहीं है कि किसने, किसको, कितना चंदा दिया यह पता नहीं चल पा रहा है।
– इधर चुनाव आयोग ने अपनी अर्जी में कहा था कि वह 2019 से पहले खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की सूचनाएं सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट में जमा करा चुका है। अब इसके अलावा उसके पास कोई और सूचना नहीं है। जब कोर्ट यह जानकारी वापस करेगा तभी सूचना वेबसाइट पर डालने आदेश का पालन हो पाएगा।