(फोटो साभार)
नई दिल्ली। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक हलफनामा देकर केंद्र सरकार ने कहा है कि बूचड़खाने व मांस प्रसंस्करण इकाईयां पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) अधिसूचना, 2006 के दायरे में लाने की कोई जरूरत नहीं है। केंद्र ने ट्रिब्यूनल को बताया कि इसके लिए पर्यावरणी दृष्टि से उन्हें नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश और सुरक्षा उपाय पहले से ही मौजूद हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में की थी अपील
पशु अधिकार कार्यकर्ता गौरी मौलेखी ने गत वर्ष नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में अपील कर बूचड़खानों और मांस प्रसंस्करण इकाइयों को पर्यावरण प्रभाव आकलन के दायरे में लाने की मांग की थी। उन्होंने इसके लिए तर्क दिया था कि बूचड़खानों में पानी की अत्यधिक खपत के साथ और इससे जल निकाय भी दूषित होते हैं।
मौजूद है दिशानिर्देश
ज्ञातव्य रहे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हलफनामा देकर कहा कि पर्यावरण दृष्टि से बूचड़खानों और प्रसंस्करण इकाइयां नियंत्रित करने के लिए जरूरी दिशानिर्देश और सुरक्षा उपाय पहले से ही मौजूद हैं। केंद्र ने पहले से मौजूद दिशानिर्देश और सुरक्षा उपाय का हवाला देते हुए कहा कि इसको EIA- 2006 के दायरे में लाने की कोई जरूरत नहीं है।
अवैध बूचड़खाने पर्यावरण को नुकसानदायी
मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि नौ जानवरों तक की क्षमता वाले अवैध बूचड़खाने पर्यावरण को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिसको सही से नियंत्रित और निगरानी करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) स्थानीय प्रशासन की मदद से अवैध बूचड़खाना इकाइयों पर नकेल कसने के लिए सभी राज्य-स्तरीय निगरानी समितियों को पत्र भेज सकता है और उन्हें संगठित क्षेत्र में अपग्रेड करने की सिफारिश कर सकता है।