प्रदीप शर्मा संपादक
अब नेहरू नहीं बल्कि भारत के भविष्य चिंतक हैं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। यह एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी शिक्षा आदि को लेकर कतिपय लोग सवाल उठाते हैं। मगर ज्ञान कभी भी अक्षरों से नहीं चिंतन से आता है। इस मान से देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जो परम शिक्षित हैं से यदि मैं तुलना करना चाहूं, तो मोदी भी शायद एक युग पुरुष होंगे।
नेहरू या इंदिरा के बाद कौन
दुर्भाग्य या सौभाग्य से हमारे देश में साक्षात ईश्वर या व्यक्ति पूजन की अघोषित सी परंपरा बनी रही है। कालांतर में देश के सामाजिक, धार्मिक और अन्य परिवेशों में हमने इन्हें माना, सम्मान दिया और किसी हद तक कहें तो हमने इन्हें पूजा भी खूब🙏
अब यदि इसे आधुनिक परिवेश में याद किया जाए तो हमने एक जमाना वह भी देखा है जब कतिपय राजनीतिक संगठन के सदस्य एक नेत्री के सामने साक्षात दंडवत हो जाते थे। तब उन्होंने यह भी कहा कि “इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा”। इन शब्दों को कहने वाले भी कोई मामूली शख्सियत नहीं बल्कि तत्कालीन सत्तारूढ़ राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष (हुआ करते) थे। ऐसी स्थिति में हिंद महासागर की स्वामी विवेकानंद शिला पर हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मचिंतन पर सवाल उठाने वालों को अपने गिरेबान देखने की जरूरत है। जिसमें उन्होंने किसी महान कार्य को करने का संकल्प जताया था।
अब मुद्दे की बात
अब हम बात शुरू कर रहे हैं जहां से ‘मोदी युग’ उदय की शुरुआत हुई। तब देश के बड़े राजनीतिक फलक पर कोई इस नाम को जानता भी नहीं था। तो याद करें कतिपय तत्वों द्वारा निहत्थे ‘राम मंदिर सेवा यात्रियों’ से भरी साबरमती ट्रेन को जिंदा आग के हवाले किया गया था। इनमें तो अभी भी कईयों का पता भी नहीं चला। दुर्भाग्य से इस आपराधिक हादसे की जांच करने की वकालत कोई नहीं करता। अलबत्ता तब भड़के भयावह जनआक्रोश में गुजरात जैसा शांत प्रदेश दहल उठा था। तब यह नरेंद्र मोदी थे जिन्हें तत्काल सीएम बनाए जाते ही राज्य की फिज़ा में शांति आई और उनके लगातार 3-4 टर्न के कार्यकाल में यह प्रदेश देश की इकाॅनामी में सबसे बड़े स्टेट में शामिल हुआ।
पीएम के रूप में मोदी
इसके बाद 2014 और 2019 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने देश की राजनीति और काम करने की दिशा और दशा बदलकर दुनिया के फ्रंटलाइन कंट्री में भारत को शुमार किया। क्या यह अचरज की बात नहीं कि बड़े अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष उनके गले मिलना तो दूर चरण स्पर्श कर सम्मान और आदर जताते हैं।
वैश्विक राजनीति में मोदी-मोदी
देश की राजनीति में उनके विपक्ष में तो शायद कोई नेता नजर नहीं आता मगर यह मोदी हैं कि पूरी दुनिया मोदी से यह अपेक्षा जताती है कि वे यूक्रेन-रूस व इजरायल-हमास मामले में हस्तक्षेप कर युद्ध को शांत कराएं। यह मोदी ही हैं कि देश के दोनों मित्र देश रूस व इजरायल से साफ कह देते हैं कि उन्हें केवल शांति में भरोसा है। जबकि यह बारी यहां के अन्य नेताओं की होती तो वे वैश्विक चिंताओं के स्थान पर अपने वोटबैंक का ख्याल रखकर काम करते। हमारा मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस युग की शुरुआत की है वह आने वाले समय में भारतवर्ष का मान बढ़ाएगी इसमें कोई संदेह नहीं। यहां बता दें कि नेहरू के जमाने में विदेश नीति इतनी अव्यावहारिक थी कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत वर्ष को मिल रही वीटो पावर वाली सदस्यता को ठुकरा कर हमने चाईना का नाम प्रपोज कर दिया। और इसके तत्काल बाद इसी चीन ने भारत पर हमला कर हमारे हजारों मील भूमि पर अवैध कब्जा जमा लिया।